आजकल जो लोग विद्वान गिने जाते और जिनके करने धरने से कुछ हो सकताहै; उन में से बहुत से तो शास्त्र को देखते तक नहीं। बहुत से ऐसे हैं कि, स्वयं तो शाख को जानते नहीं परन्तु अपनी पंडिताई बराबर छोंके चले जाते हैं। उपरोक्त ग्रंथ विमुखता और भभिमानताही तो सब काम बिगाड़ रही है, और बराबर ज्योतिषी लोगों के ऊपर अपना अधिकार करती चली जाती है। यहां तक कि, अब इस अदूरदर्शिताका फल भी कुछ २ फलनें लगाहै ।
आजकल ज्योतिषी लोग पेट-चिन्तामें लगे रहकर भली भांति से उस विद्या को नहीं पढ़ते पढ़ाते । इसी कारण कम परिश्रम करने की इच्छा से अनेक करण ग्रंथों को विना हीं देख भाले, उन करण ग्रंथों के मूल श्री सूर्यसिद्धान्तका नाम लेकर, भौर ग्रंथोंकी सारिणी की सहायता से तिन करण ग्रंथों के फल को प्राप्त हो इस अपूर्व ग्रंथ की दुहाई दिया करते हैं।
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