Sarvartha Chintamani
Publication: Alpha Publication
मुझे श्री कृष्ण कुमार द्वारा लिखित ‘सर्वार्थ चिंतामणि’ की व्याख्या देखने का शुभ अवसर मिला। यह इनकी मधुकरी वृत्ति का फल है, एक सुंदर मूल्यवान ज्योतिषीय ज्ञान का संकलन। अनंत आकाश में बिखरे ग्रह, नक्षत्रों से निरंतर बहती आकाशीय ऊर्जा के प्रभावों की गणना करना, उनके जड़ चेतन पर पड़ने वाले प्रभावों को पहचानना, इन प्रभावों का समय निर्धारित करना, और इन सबका एक पुस्तक के रूप प्रस्तुतिकरण कर ऋषियों ने अपनी मेघा और अन्तर्ज्ञान की अनंत, अनन्य शक्तियों का उपयोग कर एक असंभव कार्य किया। कैसे, यह असंभव सा कार्य किया जाता रहा, यह आश्चर्य की बात है। ‘सर्वार्थ चिन्तामणिः कई दृष्टियों से ज्योतिष का अनूठा ग्रन्थ है। इस पर श्री स्व. जगन्नाथ भसीन, स्व. सूर्य नारायण राव, डा. सुरेश चंद्र मिश्र आदि की अंग्रेजी और कई टीकाएं हैं।
इस टीका ने ज्योतिष प्रेमियों की एक, ज्योतिष के अध्ययन की एक बड़ी बाधा दूर की है। कैसे? मूर्धन्य ज्योतिष ऋषियों ने सर्वार्थ चिन्तामणि जैसी पुस्तक यह मानकर लिखी लगती है कि पाठक, प्रारंभिक ज्योतिष तो जानता ही है, और इसमें दिए व्याख्यीय शब्दों के अर्थ आत्मसात कर चुका है। अब ज्योतिष को पढ़ने वालों में बहुलता संस्कृत न जानने वालों की है, बहुतों का ज्योतिष व्यवसाय नहीं है, सामान्य ज्योतिषी ज्योतिष की संदर्भित गहराइयों में जाना नहीं चाहते। ऐसे पाठकों के लिए अनेक उदाहरण देकर विषय या उपविषय को समझाया गया है। पिछले प्रारंभिक संदर्भों की इसी पुस्तक में टिप्पणी द्वारा उनकी तुरंत सदुपयोग के लिए याद दिलाई गई है। साथ ही विषय या उपविषय से संबद्ध और विद्वानों के विचारों की ओर भी ध्यान दिलाया गया। तालिकाएं बनाकर विषय को सरल बनाया गया है।
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