पिछले कुछ दशकों से भारतीय ज्योतिष (विशेष रूप से दक्षिण भारत) में यह एक फैशन/ ज्योतिष से जोड़ने की होड़ सी लगी है। यद्यपि मुझे संदेह है कि ये सब नाड़ी/ नाड़ी ज्योतिष को समझते भी हैं? और किस नाड़ी की बात कर रहे हैं? सर्व प्रथम में पाठकों को कुछ बुनियादी तत्वों से परिचित कराना चाहता हूँ।
“नाड़ी” शब्द के संस्कृत/ प्राचीन तामिल भाषा में अनेक पृथक अर्थ हैं:
श्वांस या स्वर संचालन – एक सामान्य जातक इडा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों द्वारा एक दिन में औसतन 21,600 बार श्वांस लेता / छोड़ता है।
आयुर्वेद में रोगी के रोग के विषय में जानने के लिए, उस की कलाई के पास रक्त प्रवाह की धड़कन को महसूस करने को भी नाड़ी कहते हैं।
वर-कन्या के वैवाहिक अष्कूट मिलान में “नाड़ी” एक प्रमुख अंग है, जिसके तीन प्रकार होते हैं-आद्य, मध्य और अन्त्य नाड़ी।
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