विवाह संस्कार लग्न में किसी भी लग्न का अन्तिम नवमांश त्याग देना चाहिए । यदि लग्न और नवांश राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो उस वर्गोत्तम संज्ञक लग्न नवांश में अन्तिम नवांश भी ठीक होता है। मिदुन कन्या धनु और मीन आदि लग्नों के और अन्तिम नवांशों का स्वामी एक हो ग्रह होने से ये वर्गोत्तम लग्न नवांश होने से ये लग्न नवांश का विवाह संस्कार शुभ होता है। यदि चन्द्रमा तुला और मकर राशि का तो चर राशियों में चर नवांश वगोंत्तम नवांश होने के बावजूद चर-चल होने से यहां ऐसा वर्गोत्तम नवांश ग्राह्य नहीं होता है। तुला और मकर के अतिरिक्त मेष और कर्क के चन्द्रमा में भी चर नवांश शुभ कहा गया है। जिस लम्त से शुभ फलद ग्रहों की संख्या ५ तक नहीं है उस लग्न का भी विवाह शुभद नहीं होता।
नवांश ज्ञान विधि – ३६० अंशों में राशियाँ १२ होती हैं। अतः ३६०÷१२=३० अंश को एक राशि तया ३०÷९ ३ अंश २० कला का एक नवांश होता है । जिस राशि में बभीष्ट नवांश का ज्ञान आवश्यक हो तो उस राशि की गत नवांश
संख्या को १० से गुणा कर ३ से भाग देने से लब्धि उस राशि के गत बंश होते हैं। प्रत्येक राशि में नवांशों के अंश (१) ३२०० (२) ६१४० (३) १००० (४) १३१२० (५) १६१४० (६) २०१० (७) २३१२०, (८) २६१४० और नव नवांश २६ अंश ४० कला + ३।२०- ३० अंश १ राशि होती है। यदि हमें मेष राशि के वृश्चिक नवांश की अंशादि संख्या ज्ञात करनी है तो वृश्चिक राशि संख्या ८वीं गत संख्या ७ को १० से गुणा कर ७० में ३ से भाग देने से २३।२० फलतः २३ अंश २० कला में ३ अंश २० कला जोड़ने से २६ अंश ४० कला तक मेष राशि में वृश्चिक राशि का नयांश सुखेन ज्ञात हो जाता है ।। ३१ ।।
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