अन्नादि माप में उपयुक्त घनहस्त आदि परिभाषा –
इस्तोन्मितैर्विस्तृतिदैर्घ्यपिण्डर्यद् द्वादशास्रं घनहस्तसंज्ञम् ।
धान्यादिके यद् घनहस्तमानं शास्त्रोदिता मागधखारिका सा ॥७॥
द्रोणस्तु खार्याः खलु षोडशांशः स्यादाढको द्रोणचतुर्थभागः ।
प्रस्थश्चतुर्थांश इहाढकस्य प्रस्थांघिराद्यैः कुडवः प्रदिष्टः ॥८॥
भा० -१ हाथ लम्बाई, १ हाथ चौड़ाई और १ हाथ उँचाई अथवा गहराई जिसमें हो, वह १ घनहस्त कहलाता है, जिसके नीचे, ऊपर और मध्य में सब मिलकर १२ कोण होते हैं। जैसे मिट्टी के तेल का कनष्टर अथवा ट्रक होता है। इस प्रकार अन्न आदि तौलने (मापने ) के लिये जो घनहस्त बनाया जाता है उसे शास्त्र कथित मगध देश प्रचलित खारी कहते हैं। उस खारी के षोडशांश को द्रोण, दोण का चतुर्थांश आढ़क, आढ़क काचतुर्थांश प्रस्थ और प्रस्थ का चतुर्थांश कुड़ब कहलाता है ।। ७-८ ॥
वि० – प्रायः उस समय में १ मनुष्य १ प्रस्थ अन्न भोजन करता था, क्योंकि- “सर्वांरम्भास्तण्डुलप्रस्थमूलाः” यह लोकोक्ति प्रसिद्ध है।
तुरकों की चलाई हुई तौल परिभाषा-
पादोनगद्याणकतुल्यटद्विसप्ततुल्यैः कथितोऽत्र सेरः ।
मणाभिधानः ख-युगैच सेरैर्धान्यादितौल्येषु तुरुष्कसंज्ञा ॥९॥
भा० -पौन ( ३ ) गद्याणक का १ टङ्क, ७२ टङ्क का १ सेर, और ४० सेर का १ मन यह अन्न आदि तौलने के लिये तुरकों की बनाई संज्ञा है ॥ ९ ॥
आलमगीरसाह की बनाई तोल परिभाषा
द्वथङ्कन्दु-संख्यधंटकैश्च सेरस्तैः पञ्चभिः स्याद्धटिका च ताभिः । मणोऽष्टभि ‘स्त्वालमगीरशाह’ कृतात्र संज्ञा निजराज्यपूर्पु ॥१०॥
भा० – ( पूर्वोक्त ) १९२ घटक का १ सेर, ५ सेर का १ घटिका (पसेरी ) और ८ पसेरी का १ मन यह आलमगीरसाह ने अपने राज्य में संज्ञा बनाई ॥ १० ॥
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