अनादि काल से मानव की यह इच्छा रही है की वह जीवन में आने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान लगा सके। अंतरिक्ष में चमकने वाले अनंत तारा-समूहों ने उस को सदा ही आकर्षित किया है और इन में ही उस ने अपनी सभी जिज्ञाषाओं का हल खोजने का प्रयास किया है। इस अंतरिक्ष का विभिन्न दृष्टिकोण से अध्ययन खगोल-शास्त्र और उनका मानव जीवन एवं संसार पर संभावित पूर्वानुमान के अध्ययन को ज्योतिष शास्त्र कहते हैं। भारतीय ज्योतिष की शक्ति एवं प्रेरणा के स्त्रोत वेद हैं जो सभी प्रकार के ज्ञान एवं बुद्धि के भण्डार हैं। इसी लिए इस को वैदिक ज्योतिष भी कहते हैं। इस को समझने और इस में कुशलता प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति को पूर्व जन्मों और पूर्वकर्मों के अस्तित्व और प्रभाव के बारे में पूर्ण आस्था हो। हमारा वर्तमान जीवन और इस में हम जो कुछ भी हैं या जो कुछ भी होने वाला है भूतकाल में हमारे किये हुए कर्मों का फल ही है। सही समय पर, काल, इंसान को अपने पूर्व कर्मों के फल की ओर खींचता है। जैसे पूर्व कमों को अब मिटाया नहीं जा सकता, उसी प्रकार उन के फलों का सुख दुःख भोगना अवश्यंभावी है। यही विधि का विधान है। संत तुलसी दास ने “राम चरित मानस ” में कहा भी है
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