वैवाहिक विलम्ब, विघटन, विसंगतियों, विकृतियों, विध्वंसो व विनाश के विकराल विस्तृत विस्तार के परोक्ष में पापाक्रान्त क्रूर शनि की वेदनाप्रदायक भूमिका के वैशिष्ट्य से प्राय: अनभिज्ञ, ज्योतिष प्रेमियों के संज्ञान संवर्द्धन हेतु, ‘वैवाहिक सुख में शनि प्रमुख’ नामक शोध संरचना, प्रबुद्ध पाठकों और जिज्ञासु छात्रों के समक्ष प्रस्तुत है।
वैवाहिक सुख में शनि प्रमुख शीर्षाकित इस कृति को, इसमें समायोजित सामग्री के आधार पर अग्रांकित ग्यारह अनुसंधानात्मक अध्यायों में विभाजित एवं व्याख्यायित किया गया है।
शनि आकृति एवं प्रकृति; शनि की अनुकूलता ही विवाह की सम्पन्नता; सप्तम भावस्थ शनि वैवाहिक विषमताएँ; शनि-मगलकृत वैवाहिक विसंगतिकारक ग्रहयोग; वैवाहिक सुख में शनि प्रमुख; शनि और व्यवसाय, व्याधिकारक एवं आयु निर्णायक शनि, शनि शमन हेतु परिहार विधान; वैवाहिक विलम्ब का समाधान साधना और संस्कार; पुरूषो के विवाह में व्यवधान एवं शान्ति विधान, वैवाहिक वैधव्य एवं विघटन शमन विधान।
विवाहकाल के सटीक परिज्ञान में शनि की अनुमति अपेक्षित है । इस रहस्य को पूर्व चालीस वर्षो से ज्योतिष शास्त्र के विभिन्न पक्षों पर केन्द्रित वृहद् पचपन शोध प्रबंधों के रचयिता श्रीमती मृदुला त्रिवेदी तथा श्री टीपी त्रिवेदी ने ‘वैवाहिक सुख में शनि प्रमुख’ नामक कृति में प्रस्तुत करके, समस्त ज्योतिष प्रेमियों की चेतना को जागृत करने के सघन, सारस्वत संकल्प को सतर्कता के साथ साकार स्वरूप में प्रस्तुत किया है । विवाहकाल परिज्ञान तथा वैवाहिक विलम्ब और विघटन के समाधान हेतु अनेक अनुभूत परिहार प्रावधान भी इस कृति में समाहित किए गये हैं, जो वैवाहिक वेदना और विषाद के समाधान हेतु प्रांजल साधना पथ प्रारूपित करेंगे।
ग्रन्थकार परिचय
श्रीमती मृदुला त्रिवेदी तथा श्री टी.पी. त्रिवेदी देश के प्रथम पक्ति के ज्योतिर्विद हैं। इन्होंने ज्योतिषशास्त्र पर केन्द्रित हिन्दी एव अग्रेजी में 55 वृहद शोध-प्रबधो की संरचना की है. जिनकी विश्वव्यापी लोकप्रियता, सारगर्भिता, सार्वभौमिकता बार-बार, हर बार प्रतिष्ठित. प्रशंसित और चर्चित हुई है। लेखकद्वय के देश की यशस्वी पत्र-पत्रिकाओं में 450 से अधिक शोधपरक लेख प्रकाशित हुए हैं। आप द्वारा लिखित सभी ग्रथ देश के शिखरस्थ. यशस्वी और गरिमायुक्त सस्थाओं द्वारा प्रकाशित हैं और सबधित विश्वविद्यालयों में ज्योतिष शास्त्र के पाठ्यक्रम में भी सम्मिलित किये गये हैं। आप ज्योतिष लान के अथाह सागर के जटिल गर्भ में प्रतिष्ठित अनेक अनमोल रत्न अन्वेषित कर, उन्हें वर्तमान मानवीय सदर्भों के अनुरूप संस्कारित करने के पश्चात् जिज्ञासु पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते रहते हैं।
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