उन महात्माओं को जिन्होंने इस शास्त्र को जीवित रखा श्रीमती कान्ता गुप्ता एवं श्रीमती अनीता माथुर संस्कृत विदुषी, सफल ज्योतिषी और ज्योतिषशोधकर्त्ता होने के कारण अङ्गलक्षण की इस पुस्तक को आपके सामने प्रस्तुत कर पाई हैं। अङ्गलक्षण पर विशेष ध्यान देना इसलिये आवश्यक है कि कई बार जन्मकुण्डली जीवन का जो पक्ष दिखा नहीं पाती है, वह अङ्गलक्षण की एक झलक से नज़र आ जाता है। मैं यहाँ कुछ उदाहरण देकर इसे समझा रहा हूँ। एक बार एक महिला मुझे अपनी कुण्डली दिखाने आईं। मैंने उनके चेहरे और विचित्र प्रकार के बालों के घुंघरालेपन को देखकर उनके मामा को बता दिया कि यह अशुभ घटना का संकेत है।
किंतु कारण नहीं बताया। उस महिला को उसके पति ने काश्मीर ले जाकर जान से मारने की कोशिश की। किसी प्रकार वह बच करआई। जब उसके माता पिता ने मुझ से पूछा तो मैंने कहा, ‘इसका तलाक कराकर दूसरी शादी कर दें।” अब उसकी दूसरी शादी हो चुकी है और वह सुखी है। इसी प्रकार एक बार एक पुरुष मेरे पास आए। उनके चेहरे पर छाई हुई हल्की सी कालिमा और आवाज़ के रूखेपन से मुझे कुछ अप्रिय घटना का संकेत मिला। समयाभाव के कारण मैं उनको कोई भविष्यवाणी तो दे नहीं पाया, किंतु दो दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार संतों के पास जाने वाले लोग यह अनुभव करते ही आए हैं, कि अङ्गलक्षण या अङ्ग पर प्रकट हुए कुछ सामयिक चिह्नों के आधार पर ये संत अचानक कुछ ऐसा कह बैठते हैं, जो हम कुण्डली का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विवेचन करके भी पकड़ नहीं पाते। अब ऐसी दो घटनाओं का उल्लेख कर रहा हूँ जो मैंने मित्रों से सुनी हैं। कामकोटि के परमाचार्य चन्द्रशेखर सरस्वती के कुछ भक्त उनके पास बैठे थे। उन्होंने एक भक्त से कहा- ‘तुम तुरन्त घर चले जाओ।
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