घोरराहु अपने तीव्र तिमिरसे भारतभण्डारके विमल सूर्यरूपी सुग्रन्थ ज्योतिष चिद्याको चारों ओरसे आच्छादित कर रहा था, बडे २ त्रिकालज्ञ ऋषि मुनीश्वरोंके प्रणीत ग्रंथ बलवान् मुसलमान अग्नि- कुंडमें हवन कर रहे थे, जिन ग्रन्थोंके अवलंबसे ज्योतिषी त्रिकालज्ञ कहलातेथे, ऐसी अपूर्व घटनाको अवलोकन कर उससे पारपानेके हेतु ‘जीवनाथनामा ज्योतिबिंद्’ जो उस कालमें परम सिद्ध पुरुष कहलाते थे, ज्योतिष विद्यामें अद्वितीय ज्ञान होनेसे लोग उनकी जिह्वामें सरस्वतीका वास बतलाते थे, उन्होंने यह निर्मल शब्दरूपी अमृतपुंजसे “भावकुतूहल ” ज्योतिष फलादेशरूपी धारा निकाली है, इसमें निमग्न होने (पढने) से मनुप्य सर्वज्ञाता हो सक्ता है, तीनों कालकी बातको जान सक्काहै, उत्तम रीतिसे कुण्डलीका फलाफल कह सक्ताहै, यह ग्रन्थ संस्कृतमें होनेसे सबके समझमें नहीं आता था इसलिये अनभिज्ञ बालकोंके प्रसन्नतार्थ टीहरी (गढवाल) निवासी ‘महीधर’ नामा ज्योतिषी निर्मित अत्युत्तम भाषाटीका सहित इसे अपने “श्रीवेङ्कटेश्वर” स्टीम्-मेसमें मुद्रित कर प्रसिद्ध करता हूं।
अबकी बार द्वितीयावृत्तिमें फिर भी बृहज्जातकादि ग्रन्थोंके आश्र यसे शात्रियोंसे भलीभांति संशोधन कराय मुद्रितकर प्रकाशित कर ताहूं आशाहै कि अनुग्राहक ग्राहक इसे ग्रहणकर स्वयं लाभ उटावेंगे और मेरे परिश्रमको सफल करेंगे।
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