भारतीय ज्योतिष के ख्यातिलब्ध उद्भट विद्वानों में श्रीपति भट का नाम स्मरणीय है। मध्यकाल में जबकि भारतीय मनीषा नाना विषयों को आधार बनाकर अपनी शोधानुसंधारपरक दृष्टि का परिचय देने में लगी थी और भोज जैसे शासकों से लेकर विद्वत्सभा धर्म और क्रियामूलक साहित्य के साथ-विज्ञानसम्मत ग्रंथों के ग्रंथन में आकण्ठ संलग्न थी, उसी काल में श्रीपति का जन्म हुआ और ज्योतिष की त्रयस्कंध रूपेण ज्ञानलक्ष्मी पर अपने नामाभिधान को सार्थक करने में लगे।
श्रीपति की प्रज्ञा चामत्कारिकता को लिए हुए थी। अनेक तर्कों की कसौटी पर उनका ग्रंथ साहित्य स्वर्णिम सत्यता का धारक सिद्ध हुआ। उन्होंने भारतीय ज्योतिष के ज्ञान-भाण्डागार को विस्तार दिया। सिद्धांत और व्यवहार दोनों पर उन्होंने अपनी प्रतिभा को सिद्ध किया। उनकी ज्योतिषीय उक्तियां सैकड़ों वर्षों से सांवत्सरों, गणकों, दैवज्ञों और ज्योतिषियों के कण्ठकोश पर विद्यमान है। सरल, सरस और संक्षेपण सहित सुगमतापूर्ण सृजन उनके ग्रंथों का वैशिष्ट्य है।
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