ज्योतिषशास्त्र वेद का नेत्र माना जाता है। कोई भी कार्य यदि सुन्दर मुहूर्त में न किया जाय तो पूर्ण होने में संशय होता है। मुहूर्त कई प्रकार से बताये जाते हैं। जैसे १- ग्रह-नक्षत्रों, योगों आदि पंचाङ्गों से, २- स्वर से तथा ३- प्रश्न से-इनमें से प्रश्न और स्वर में भी सामान्यतः पंचाङ्ग की आवश्यकता होती है, किन्तु जो मुहूर्त तिथि, नक्षत्र, करण, योग आदि के आधार पर होते हैं, उनमें तो मूलरूप से ज़्योतिषशास्त्र ही आधार है। इसे शास्त्र में बहुज्ञ भले ही न हो, किन्तु अल्पज्ञ या किञ्चितज्ञ होना तो किसी भी शास्त्र के विद्वान् को अनिवार्य है, क्योंकि विद्वान का सम्बन्ध विशुद्ध रूप से भारत की धार्मिक जनता से रहता है। धार्मिक-जन निविघ्न कार्य की पूर्णता ही चाहते हैं। इसलिए वे विद्वान् का मुख देखते हैं और आशा करते हैं कि इनके आशीर्वाद से मेरा कल्याण होगा। अतएव पहिले समय के विद्वान् ज्ञान-विज्ञान के साथ कर्मकाण्ड और ज्योतिष में निपुणता प्राप्त रते थे।
आंजकल तो परीक्षा उत्तीर्ण करने की चिन्ता में सब कुछ छोड़कर परीक्षा के रामखाड़े में कई मास बिता देते हैं। फिर उन्हें अन्य विषय पढ़ने का अवसर ही कहाँ है। इन्हीं परिस्थितियों में ज्यौतिष का सामान्य लोकोपयोगी ज्ञान के लिए इस संग्रह का निर्माण किया गया है।
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