आज भी 2 वर्ष की आयु पार कर बच्चा स्कूल जाना शुरू करता है तो उसका बचपन, किशोरावस्था तथा यौवन के स्वर्णिम वर्ष शिक्षा संस्थाओं में विद्यां अध्ययन करते बीतते हैं। आज शिक्षा शास्त्रियों के सम्मुख प्रमुख समस्या है ”बालकों की बुद्धि का विकास कर उन्हें ऐसी विद्या प्रदान करना जो उनके, समाज के व देश की खुशहाली में महत्त्वपूर्ण योगदान करे।” आज व्यवसायपरक प्रशिक्षण का महत्त्व, जनसमाज ने समझा है किन्तु, शायद अभी तक गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार त्था आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक अपराधों से लड़ने तथा उन पर विजय पाने के लिए, हमारी शिक्षा पूरी तरह सक्षम नहीं है। आज – सामान्य व्यक्ति, स्वयं को कभी तो बहुत दुर्बल और असहाय पाता है, तो कभी घर परिवार में सिमटकर अपने सामाजिक कर्तव्य और दायित्व से मुँह मोड़ लेता है। परिणाम भी सामने है । लोकसभा में अनुशासनहीनता तथा अमर्यादा, या जोड़-तोड़की राजनीति है। सड़कों पर लगा जाम, बाल वाटिकाओं की दुर्दशा, जहाँ-तहाँ गंदगी के ढेर और पशुओं से भी हीन जीवन गुजारते गरीब परिवार; हमारी स्वतंत्रता व सभ्यता को कलंकित करते हैं। कभी आर्थिक अपराध व करोड़ों रुपये का घोटाला कर समाज में पद प्रतिष्ठा पाने वाले किसी व्यक्ति में, बुद्धि और विद्या को खोजना असाध्य जान पड़ता है।ऋषि मुनियों की पावन धरती पर छल, कपट, प्रपंच और परधन हरण ही मानों आज श्रेष्ठ विद्याबन गई है। मित्रों का आग्रह था कि “बुद्धि विद्या” पर कोई लघु पुस्तिका बने जो माता-पिता -को अपने बचे में छिपी क्षमता, योग्यता तथा विशिष्ट गुणों कौ पहचान कर उसे एक गुणी, सक्षम व धनी मानी व्यक्ति बनाने की राह सुझाए।
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