Hasthrekha Sutra Evam Siddhant
“यह जानना अत्यन्त आश्चर्यचकित कर देने वाला होता है कि मनुष्य के हाथों में कितना कुछ समाया हुआ है, और वह सब कितना तार्किक, अर्थपूर्ण एवं सामान्य जीवन से जुड़ा हुआ होता है। हस्तरेखा शास्त्र को रहस्यात्मक ज्ञान (Occult) के क्षेत्र से निकालकर जीवनोपयोगी अन्य तर्कसंगत विधाओं के अंतर्गत रखकर समझा जाना चाहिए, जिससे किसी व्यक्ति के विषय में अधिक सटीक जानकारी मिल सके। निश्चित तौर पर हस्तरेखा शास्त्र तंत्र-मंत्र का क्षेत्र नहीं है और इसका पठन-पाठन अन्य तर्क-आधारित विद्याओं की भांति सहजता से किया जा सकता है।”
हस्तरेखा शास्त्र को तकनीकी रूप से प्रस्तुत करने के लिए विलियम जी. बेनहम द्वारा दिए गए उपरोक्त परिचय से बेहतर शब्द नहीं हैं। जो लोग मिथ्या वैज्ञानिक अहंकार के कारण इस ‘शास्त्र’ या ‘विद्या’ का उपयोग नहीं करना चाहते, वे अति सीमित और पक्षपातपूर्ण मानसिकता के शिकार हैं। उनसे यहां उलझने की हमारी कोई मंशा नहीं है। हस्तरेखा शास्त्र एक प्राचीन विद्या है और सामुद्रिक शास्त्र के उस भाग का हिस्सा है जो मानव शरीर और हथेली के चिन्हों एवं लक्षणों से संबंधित है। हम आलोचनाओं और विवादों से दूर रहने के लिए, हस्तरेखा विद्या को ‘विज्ञान’ का दर्जा देने से तब तक बचते रहेंगे, जब तक आज के तथाकथित वैज्ञानिकों में इस विद्या को समझने और सराहने की क्षमता न विकसित हो जाए। आम मनुष्यों को इस विद्या से लाभ प्राप्त करने में कोई बौद्धिक अड़चन नहीं होती।
हस्तरेखा शास्त्र के सबसे प्रसिद्ध पाश्चात्य नामों में से एक ‘कीरो’ (Cheiro) ने पूरी श्रद्धा और आदर के साथ भारत की एक प्राचीन पांडुलिपि का जिक्र किया है जिसमें हस्तरेखा शास्त्र के चिन्हों का अर्थ निहित था। कीरो इस विषय के सबसे प्रबुद्ध एवं प्रसिद्ध लेखक और पेशेवर हस्त रेखाविद् (Palmist) थे। उन्हें हस्तरेखा शास्त्र के क्षेत्र में इतना धन, यश और प्रसिद्धि नहीं मिली होती यदि वे अपने आप को उतनी ही विद्या तक सीमित रखते, जितनी विद्या का उल्लेख उन्होंने अपनी पुस्तकों में किया है। उन्होंने निश्चित रूप से भारत से हस्तरेखा शास्त्र पर प्राप्त अन्य गोपनीय, रहस्यात्मक गुह्य ज्ञान का अवश्य उपयोग किया होगा।
एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर और रिफ्लेक्सोलॉजी ऐसी विद्याएं हैं जिनकी आज से एक-दो दशक पहले तक कोई विशेष मान्यता अथवा सर्व स्वीकृति नहीं थी। इनमें शरीर के उन मर्म स्थलों पर कार्य किया
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