रहस्य जिज्ञासा का उद्गम स्थल है। वैयक्तिक रुचि के अनुसार विश्व का मानव विभिन्न रहस्यों के अनावरण के लिए सतत प्रयत्नशील है। भूगर्भ के रहस्य भूगर्भ शास्त्री को, वनस्पतियों के रहस्य वनस्पति शास्त्री को एवं भौतिक-रहस्य भौतिक शास्त्री को अपनी ओर सक्रिय रूपेण माकृष्ट करते हैं; शेष व्यक्ति इन विषयों के रहस्यों के प्रति उत्पन्न अपनी जिज्ञासा की शान्ति के लिए बाधित नहीं हैं। वे यदि अपनी एतद्विषयक जिज्ञासा को ‘जिज्ञासा’ तक ही सीमित रखें, तो उन्हें कोई हानि भी नहीं है। परन्तु व्यक्ति का स्वकीय-भविष्य एक ऐसा रहस्य है, जिसके प्रति अपरिहार्य रूपेण उत्पन्न होने वाली जिज्ञासा उनसे उत्तर चाहती है; क्योंकि प्रागामी अनुकूल-घटनाों का पूर्वज्ञान व्यक्ति को प्रात्मबल, द्विगुण-उत्साह तथा प्रतिकूल घटनाओं की पूर्व सूचना से सतर्क रहकर उनके कुप्रभाव को विखण्डित या अल्प करने का अवसर देती है। अपने रहस्यमय भविष्य की जिज्ञासा को संवरण न कर सकने की मानवीय-प्रकृति के मूल में भी यही तत्त्व निहित है।
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