श्रीकामेश्वसिह संस्कृत विश्वविद्यालय, वरभंगा की मध्यमा परीक्षा में निर्धारित ‘नाह्निवसपविशतिका’ तया ‘शिशुबोध’ की एक-वो टीकाएँ सामने आयीं। यों तो शिशुबोध का संकलन ही अपने में लघुकाय तया सरल भाषा मे होने के कारण सुखबोध है, परन्तु मुझे जो-जो व्याख्याएँ देखने को मिलीं, उनमें प्रयत्न यह हुआ है कि ग्रन्थ बुर्बोध हो जाय। कहा नहीं जा सकता, ऐसा प्रयास टीकाकारों का रहा है या पुस्तक-व्यवसायियों का, बोनों ही सोच लें ।
प्रायः पाठयक्रम में निर्धारित ऐसी पुस्तकों का सरल भाषा में अर्थ एवं भाव स्पष्ट कर देना मात्र सफलता की चरम श्रेणी होती है. न कि ग्रन्य को और दुरूह करने का प्रयास और न ‘मक्षिकास्थाने मक्षिकासनिवेशः’ हो उचित है। अस्तु ।
प्रस्तुत टोका केवल छात्रों की परीक्षा की दृष्टि में रखते हुए लिखी गयी है। बाजार में उपलब्ध अग्य संस्करणों की अपेक्षा इसकी छपाई भो गेस पेपरों अथवा कुञ्जियों की जैसी म करके यथासम्भव अच्छी की गयी है, जिसका अनुमान पाठक स्वयं करेंगे ।
प्रिय छात्रवर्ग ! आपके हाथों में अन्य संस्करण भी आये होंगे। अब इस संस्करण को भी आप सभी दृष्टियों से देखें। यदि आपका इससे कुछ भी मन-स्तोष होगा तो मैं अपने को कृतार्थ समहूंगा। वाराणसेय चौखम्बा सुरभारती परिवार धन्यवाद का पात्र है, जिसने इस लघुकाय प्रन्थ का सावर प्रकाशन किया ।
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