Shilanyas Dehlanyas
कुशकण्डिकां विधायाऽऽघारावाज्यभागौ हुत्वा, ग्रहाहुतिं कृत्वा प्रधानहोमं कुर्यात् ॥ तद्यथा-ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्द्धनम् ॥ उर्ध्वारुकमि॑िव॒ बन्ध॑नान्मृत्योर्मुक्षीय॒ मामृता॑त् १०८ ॥ ततो नन्दा-भद्रा-जया-रिक्ता-पूर्णा-नामाष्टाविंशतिसंख्यया वेदमन्त्रेण होमं कुर्यात् ॥ पद्म-महापद्म-शङ्ख-विजय-सर्वतो- भद्राणाम् एकैकयाऽऽभ्या हुत्वा ।। ततोऽग्निपूजनम् ॥ ॐ अग्ने नये सुपथा॑ रा॒ये ऽअ॒स्म्मान्विश्र्स्थानि देव व्व॒युना॑नि विद्वान् ॥ ठु योद्ध्यस्म्मज्र्जु हुराणमेनो भूय॑िष्ठां ते नर्म उक्क्ति व्विधेम ॥ ॐ अग्नेर्वैश्वानराय नम इनि सम्पूज्य ॥
इसके बाद अग्निस्थापन कर, ईशान कोण में नवग्रह तथा रुद्रकलश का स्थापन तथा पूजन करे ॥ तत्पश्चात् कुशकण्डिका कर आघार, आज्यभाग तथा ग्रहों की आहुति देकर प्रधान होम करे। जैसे- ‘ॐ त्र्यम्बकं यजामहे०’ इस मन्त्र से एक सौ आठ (१०८) बार हवन करे। तदनन्तर नन्चा, भद्रा, जया आदि अठाइस वेदमन्त्रों से आहुति दे । एवं पद्म, महापद्म शंख-आदि पाँच कलशों के उन-उन नामों से एक-एक आहुति देकर ‘ॐ अग्ने नय सुपथा राये०’ इस मन्त्र से ‘ॐ अग्नेर्वैश्वानराय नमः’ इस प्रकार कहकर प्रज्वलित अग्नि का पूजन करे ।
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