Satyanarayan Vrata Katha
बहुत से लोग पूछा करते हैं कि वह सत्यनारायण की कथा कौन-सी है, जो ब्राह्मण और वैश्य ने सुनी थी? सो यह शंका न होनी चाहिये। उन लोगों को यह जानना चाहिये कि सत्यनारायण का एक व्रत है और उस व्रत-सम्बन्धी जो आख्यान है वही कथा है। और भगवत्सम्बन्धी जो आख्यान हैं वह युग-युग में नित्य वैसे ही होते रहते हैं और भगवद्-भक्तों के ऊपर जो अनुग्रह करने के चरित्र हैं, वही भगवत्सम्बन्धी कथाएँ हैं।
सत्यनारायण भगवान् का व्रत-पूजन समाज में सर्वत्र किया जाता है। इसे चारों वर्ण के भक्त अपनी जिस-जिस भी आपदा निवारणार्थ किये उनको उन संकटों से मुक्ति मिली। सर्वप्रथम ब्राह्मण सतानन्द ने मानसिक संकल्प से व्रत को प्रारम्भ किया। जो कि भिक्षुक जीवन व्यतीत करते थे, वे सदैव श्री नारायण के अनुग्रह से प्राप्त कृपा कटाक्ष द्वारा इहभौतिक समस्त सुखों को प्राप्त कर लिये। इसके फलस्वरूप अन्य वर्णों में भी भगवद् भक्ति की प्रेरणा मिली। लकड़हारा जो कि अज्ञानी व निर्धन है उसने भी इस व्रत का पालन कर गौरव को प्राप्त हुआ। इसी प्रकार वैश्य एवं क्षत्रिय (राजा) ने भी इस गौरवमयी- मनवांछित फलदाता व्रत को स्वीकार किया और नारायण प्रभु के अनुग्रह से लाभ प्राप्त किया ।
यह कथा श्री वेदव्यास जी ने स्कन्दपुराण के अन्तर्गत अन्य देव रेवाखण्ड में वर्णन किया है। महाशय गण ! लिखने में या छापने में जो कुछ अशुद्धियाँ हो गयी हों, उन्हें आप विद्वज्जन सुधार लेवें।
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