पहित रूप कर जोशी कृत भारतीय ज्योतिष के महान् ग्रंथ ‘लाल किलाम’ के बारे में जब भी इस वाचीत में कुछ लिखने की चेष्टा की तो शब्दों ने साथ छोड़ दिया। क्योंकि मेरा अटूट विश्वास है कि शारत्र को कंवल स्तुति को जा सकती है था उन पर शास्वार्थ किया जा सकता है इसके अतिरिक्त इनके संबंध में कुछ और कहना या लिखना मानव मात्र के जूते की बात यहीं है। फिर ‘लाल किताब’ तो ज्योतिष का आधुनिक महाशास्व है, और मुझ जैसे साधारण व्यक्ति के पास इस महाशास्व को बारे में कहने को कुछ हो ही जया सकता है?
वास्तव में ‘लाल किताब’ मात्र किसी किताय का ही जाम नहीं अपितु यह नाम एक अनूठी और अद्वितीय विचारधारा का नाम है जो कलियुग में लोक कल्याण हेतु इस संसार में अवतरित हुई है। और यह दैवीय दायित्व पडित रूप बंद जोशी जी को प्राप्त हुआ. जिन्होंने इस विचारधारा को शब्दों की माला में पिरोया।
‘लाल किताब’ 5 ग्रंथों की एक श्रृंखलाबद्ध माला है। सर्वप्रथम ‘लाल किताब’ जिसे ‘स्खाल किताब के फ़रमान’ के नाम से स्मरण किया जाता है। 1939 ई. में पंडित रूप चंद जोशी जी ने लोकार्पित किया। 1940 ई. में ‘लाल किताब के अरमान 1941 ई. में ‘लाल किताब (तीस्ता हिस्सा)’ जिसे कि उसके छोटे आकार की वजह से पंडित जी बड़े स्नेह से ‘गुटका’ कहा करते थे, वथ्या 1942 और 1952 में लाल किताब को दो अन्य संस्करण पंडित जी की बोगस्यों कलम ने इस संवर को दिए।
विश्व के विस खंड पर गीता का उपदेश दिया गया, उनी देवभूमि पर ‘लाल किताब’ का लिखा जाना केवल संभोग मात्र नहीं हो सकता। इस महान् कार्य की पूर्ति का गौरव अविभान्ति पंजाब की पुण्य भूमि को प्राप्त हुआ। उस समय उर्दू को सरकारी भाषा का दर्जा हासिल था तथा इस भाषा को लिखने पड़ने और अमझने वालों की उस क्षेत्र में कमी न थी, अतः पडित जी ने उर्दू भाषा को ही अपनी अभिव्यक्ति का साधन बनाया।
जहाँ इस ांध का उद्देश्य मानम कल्याण है, वहीं सामाजिक, मानवीय और राष्ट्रीय मूल्यों का को द्वास दिन प्रतिदिन हो रहा है उससे संसार को बचाता भी है। चित्त और चरित्र की शुद्धि इस ग्रंथ के दी अन्य मूल मंत्र हैं।
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