ग्रन्थ कर्ता निर्विघ्नतापूर्वक ग्रन्थ समाप्तर्थ अपने इष्ट देवता को प्रणाम करता है कि, जिसके प्रसाद पाकर समस्त देवता दानवादि शत्रुओं का भय दूर करके अपने अपने स्थान अधिकार कर देव लोकों में स्तिथ रहते हैं और मुनिजन अपने तपसिद्धयर्थ जिसका ध्यान करते हैं ऐसे गणेश को मैं ग्रन्थ कर्ता ग्रन्थ रचना में विघ्नविधातार्थ बारम्बार प्रणाम करता हूँ।
लेखक श्री काशिराज बलवंतसिंह का मंत्री से आजीविका पाई है जिसने अवंति देश में वसता हुआ परमसुख नामक पण्डित ने रमल नवरत्न ग्रन्थ बनाया। वह ग्रन्थ सब जगह अशुद्ध है जिसमे विद्वानों का चित प्रसन्न नहीं होता इसलिए इस समय विद्वज्जनों ने उसके शुद्ध करने के हेतु प्रार्थित किया गया रंगलालनामा उस नवरत्न को प्रगट करता है।
ये नवरत्नो के नाम इस प्रकार है। प्रथम संज्ञा रत्न, दूसरा बलाबल, तीसरा प्रश्नोपकरण, चौथा प्रश्न कहना, पांचवां मियाद बताना, छठा मुष्टिगत द्रव्य बताना, सातवां बेप्रकट किये प्रश्न बताना, आठवां चोर का नाम बताना और नवम वर्ष पत्र बनाना।
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