Phalit Sutra
ज्योतिष में क्रमिक विकास का सिद्धान्त स्पष्ट दिखता है। प्रत्येक जीव, जन्म-मृत्यु और पुनर्जन्म द्वारा, इस संसार में विविध प्रकार के कर्मों द्वारा निरन्तर विकास की ओर अग्रसर हो रहा है। यदि कहीं पर कुछ अशुभ या अनिष्ट सरीखा दिखता है तो वह भी उस विकास यात्रा का अभिन्न अंग है। कदाचित् पाप कर्म के परिणाम को भोगे बिना, पाप प्रारब्ध के कष्टों का अनुभव किए बिना, सत्य और सदाचार के पथ पर दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ना संभव ही नहीं होता।
ज्योतिष में क्रमिक विकास के सूत्र निम्नलिखित हैं:-
1. सभी प्राणी जन्मते, मरते और पुनः जन्म पाते हैं। उनका ये जीवन, अनन्त जीवन की श्रृंखला की एक छोटी कड़ी मात्र है।
2. जन्म के समय कोई भी जीव वही ग्रह स्थिति व दशा क्रम पाता है जो उसके विकास में सहायक हो।
3. जन्मकुंडली, किसी भी प्राणी के आध्यात्मिक विकास के स्तर का बोध कराती है। अन्य शब्दों में, जन्म कुंडली की ग्रह स्थिति से किसी भी व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास का वर्तमान स्तर सहज ही जाना जा सकता है।
4. जातक को प्राप्त परिस्थितियाँ, भौतिक सुविधाएँ तथा मानसिक बल, जीव के क्रमिक विकास की आवश्यकताओं के अनुरूप ही उपलब्ध हुए हैं। ये सब वस्तुएँ उस जगतपिता की सोची-समझी योजना का अंग हैं।
5. ज्योतिष में राशि, भाव और ग्रह के परस्पर संबंध से होने वाले परिणाम बहुआयामी हैं। जीव, जड़ नहीं अपितु चेतन है। कदाचित् वह परमात्मा. का अंश है। अतः ग्रहों के परिणामों को वह अपनी प्रतिक्रिया द्वारा बदलने में पूर्णतः सक्षम है।
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