मैं ज्योतिष विज्ञान का छात्र रहा हैं और अब शिक्षक भी हूँ। विद्यार्थी अवस्था से ही मैंने सोच रखा था कि ज्योतिष पर एक लघु ग्रन्थ लिखूं जो कि आम आदमी को सुलभ हो । ज्योतिष विज्ञान का महत्त्व प्रारम्भ से ही रहा है और रहेगा। ऐसी स्थिति में मेरा यह एक प्रयास है । हम जानते हैं कि ज्यौतिष काल, ग्रह, नक्षत्र आदि का निर्धारण करने वाला शास्त्र है । वैदिक यज्ञ काल ही अपेक्षा रखते हैं और वे किसी निश्चित काल में ही सम्पादित होते हैं। तभी उनका फल मिलता है । इसका निश्चय ज्यौतिष करता है । काल का विभाजन, मुहूत्र्त्त का निश्चय, ग्रह-नक्षत्रों की गति का निर्धारण इत्यादि ज्योतिष विज्ञान के ही विषय हैं ।
स्मरणीय है कि लगधाचार्य ने इन कार्यों के लिए ‘वेदाङ्ग ज्योतिष’ नामक ग्रंथ लिखा था जिसका समय १४०० ई० पू० से लेकर ८०० ई० पू० के बीच माना जाता है। इसके दो संस्करण है – आर्च ज्यौतिष (ऋग्वेद से सम्बद्ध ) जिसमें ३६ श्लोक हैं तथा याजुष ज्यौतिष ( यजुर्वेद से सम्बद्ध ) जिसमें ४३ श्लोक हैं । इस विषय का शीर्षस्थानीय ग्रन्थ वराहमिहिर का ‘बृहत्संहिता’ है । बृहत्संहिता में ज्योतिष के अतिरिक्त अन्य कई महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक विषयों का भी विवेचन है । वराहमिहिर के बाद का ज्योतिष साहित्य भी बहुत विस्तृत है।
स्मरणीय है कि ज्योतिष विज्ञान का ज्ञान अति प्राचीनकाल से ही उपयोगी सिद्ध होता आया है। किसानों को यह जानने की जरूरत सदा रहती है कि वर्षा कब होगी । शुभमुहूत्तं कब है जब किसी पुजा का विधान किया जाय । प्राचीनकाल से ही भारत देश यज्ञीय रहा है। इसलिए यह जानना आवश्यक है कि वर्ष में कितने दिन है, कब वर्ष आरम्भ होता है और कब समाप्त होता है । हम जानते हैं कि नक्षत्र, तिथि, पक्ष, मास, ऋतु तथा संवत्सर के ज्ञान के बिना यज्ञ का पूर्ण निर्वाह नहीं हो सकता। अतएव ज्योतिष का ज्ञान आवश्यक है। आज भी ज्योतिष विज्ञान का अध्ययन एक महत्त्वपूर्ण विषय है। संस्कृत संस्थानों में इसका अध्ययन, समीक्षण तथा अनुसंधान बराबर हो रहा है । आवश्यकता इस बात की है
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