Paramayu Dasha
पुस्तक के बारे में
परमायु दशा महर्षि पाराशर की अन्य नक्षत्र दशाओं की भांति एक नक्षत्र दशा है । दूसरे रूप में आनुपातिक विंशोत्तरी दशा है । दशाफल विशोत्तरीवत् ही है, परन्तु दशामान विशोत्तरीवत् निश्चित नहीं होता । इस पुस्तक में दशा, अंतरदशा तथा प्रति-अतरदशा ज्ञात करने हेतु यथाशक्ति सरलीकृत तालिकायँ दी गई हैं । विगत दो दशको से सैकड़ों परमायु दशा युक्त जन्मपत्र देखने को मिले, जिनमें विंशोत्तरी की अपेक्षा परमायु दशा को ही फलादेश की सत्यता के अधिक निकट पाया । प्राचीन भारतीय ज्योतिष शास्त्र की लुप्त हो चुकी फलादेश की यह प्रभावी विधा लेखक को वर्षो की कड़ी में हनत, प्राचीन पाण्डुलिपियों के आलोड़न व हिमालय तथा नेपाल के अनेक महर्षियों से विशद संवाद के उपरान्त उपलब्ध हुई है । इसे जन-सामान्य के लिए इस पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है । सम्पूर्ण मानव जीवन पर ग्रह अपना गुणात्मक प्रभाव डालते हैं । अरिष्ट ग्रहों का शमन कर जीवन में चमत्कारिक उपलब्धियों प्राप्त की जा सकती हैं । इन अरिष्ट ग्रहों की शान्ति व विभिन्न मनोकामनाओं की सम्पूर्ति हेतु शास्त्रों में विविध प्रकार के अनुष्ठान निर्देशित हैं ।
लेखक के बारे में
सोलह वर्ष की किशोरावस्था से ही ज्योतिष के प्रति रुझान के परिणामस्वरूप स्वाध्याय से ज्योतिष सीखने की ललक व गुरु की तलाश में कुमाऊँ क्षेत्र के तत्कालीन प्रकाण्ड ज्योतिर्विदों के उलाहने सहने के बाद भी स्वाध्याय से अपनी यात्रा जारी रखते हुए वर्ष 1985 में वह अविस्मरणीय दिन आया जब वर्षों की प्यास बुझाने हेतु परम गुरु की प्राप्ति योगी भाष्करानन्दजी के रूप में हुई । पूज्य गुरुजी ने न केवल मंत्र दीक्षा देकर में रा जीवन धन्य किया अपितु अपनी ज्यौतिष रूपी ज्ञान की अमृतधारा से सिचित किया । शेष इस ज्योतिष रूपी महासागर से कुछ बूँदे पूज्य गुरुदेव श्री के०एन० राव जी के श्रीचरणों से प्राप्त हुईं । जैसा कि वर्ष 1986 की गुरुपूर्णिमा की रात्रि को योगी जी के श्रीमुख से यह पूर्व कथन प्रकट हुए ” कि में रे देह त्याग के बाद सर्वप्रथम मेरी जीवनी तुम लिखोगे । मैं वैकुण्ठ धाम में नारायण मन्दिर इस जीवन में नही बना पाऊँगा । मुझे पुन : आना होगा ” । कालान्तर में योगी जी का कथन सत्य साबित हुआ । वर्ष 1997 से प्रथम लेखन-1. योगी भाष्कर वैकुण्ठ धाम में योगी जी के जीवन पर लघु पुस्तिका का प्रकाशन हुआ । तत्पश्चात् 2. हिन्दू ज्योतिष का सरल अध्ययन भाषा टीका 3. व्यावसायिक जीवन में उतार-चढ़ाव भाषा टीका 4. आयु अरिष्ट अष्टम चन्द्र तथा प्रतिष्ठित पत्रो-दैनिक जागरण तथा अमर उजाला में प्रकाशित सौ से अधिक सत्य भविष्यवाणियों के उपरान्त दो वर्षों की अथक खोज के उपरान्त लुप्त हो चुकी परमायुदशा आपके हाथ में है ।
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