समस्त भूमण्डलगत मानव-समाज में यह ईश्वरप्रदत्त स्वभाव है कि किसी के रूप, गुण आदि देखकर तदनुसार उसका नाम रख लेता है। इसी लिये लेखक महोदय ने प्रस्तुत पुस्तक का नाम ‘मुहूर्तपारिजात’ रखा है ।
मुहूर्त विश्वोत्पादक काल भगवान् के त्रुटि आदि कल्पान्त अनन्त अवयवों में एक महत्त्वपूर्ण अङ्ग है। जिसके आधार पर ही विश्व के मानव समाज अपने-अपने कर्तव्य करते हैं तथा स्व-स्व प्रारब्ध और पुरुषार्थ के अनुसार उसका फल प्राप्त करते हैं
‘पारिजात’ कल्पवृक्ष का नाम है, जहाँ लोग इच्छानुकूल फल लाभ करते हैं । अतः पुस्तक के नाम से ही इसमें मुहूर्त सम्बन्धी समस्तविचार समाविष्ट होना स्पष्ट सूचित हो रहा है। वास्तव में ‘यथा नाम तथा गुणः’ इस में चरितार्थ हो रहा है।
समस्त वेद, उपनिषद्, स्मृति, पुराण, इतिहास आदि प्राचीन शास्त्रों में महर्षियों ने एवं पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने परमेश्वर के लक्षण समान ही बतलाये हैं। सबों के मत से वह परमेश्वर सूक्ष्म से अति सूक्ष्म, महान् से अति महान्, निराकार होता हुआ भी साकार, निर्गुण होता हुआ भी सगुण, स्थिर होता हुआ भी चञ्चल, बिना हाथ का भी करने वाला तथा विना पैर का भी चलने वाला है।
ये सब लक्षण केवल काल ही में घटते हैं। गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने भी कहा है ‘कालः कलयतामहम्’ ‘कालोऽस्मि लोकक्षयकृत् प्रवृद्धः ।’ कालात्मा भगवान् सूर्य के अंश रूप पुरुष ने भी अपने सिद्धान्त ग्रंथ में सगुण और निर्गुण ( दोनों ) काल के लक्षण कहे हैं
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