मेलापक मीमांसा उन अनिर्वचनीय संकल्पों का साकार स्वरूप है जो मेलापक के विधान से सम्बन्धित एवं सर्वोपयोगी विशद विषय से सम्बद्ध, सघन सामग्री तथा समृद्ध शोध के अभाव के फलस्वरूप अंकुरित, प्रस्फुटित, पल्लवित, पुष्पित हुए थे। असंतुलित, अस्थिर, अनिष्टकारी दाम्पत्य जीवन की समस्त संभावनाओं को ध्वस्त करने के उपरांत सुखद दांपत्य जीवन व्यतीत करने के उद्देश्य से हर्षोल्लास के इन्द्रधनुषी रंगों के सुरमित अनुराग के अंतरंग आनन्द से संतुष्ट हो जाने हेतु सबल आधार वर-वधू के जन्मांगों के विवाह सम्बन्धी मिलान की अनिवार्यता है। जन्मांगों का मिलान जितना तर्कसम्मत एवं शास्त्रसंगत होगा, दाम्पत्य जीवन उतना ही स्थायी, समृद्ध एवं उल्लास से आनन्दित और आह्लादित होगा।
ज्योतिर्विज्ञान के अनेक मूर्धन्य विद्वानों ने नक्षत्र मेलापक अर्थात् अष्टकूट मिलान की वर्तमान प्रविधि की प्रामाणिकता पर संदेह तो व्यक्त किया है परंतु मेलापक के प्रचलित विधान का विकल्प प्रस्तुत करने की चेष्टा नहीं की है। प्रचलित एवं परंपरागत अष्टकूट मिलान, नाड़ीकूट साम्य एवं मंगलीदोष के सम्यक् मिलान के उपरांत भी विवाह असफल होने के कारण मेलापक विज्ञान से संबंधित अज्ञानता ही है जिसकी विशद व्याख्या व विवेचना मेलापक मीमांसा में सन्निहित है।
Reviews
There are no reviews yet.