Lagn Bhav ki Gatha
जन्म कुण्डली में १२ भाव होते है इन १२ भावो में से प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है इसका निर्धारण बालक के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज में उदित होने वाली राशि के आधार पर किया जाता है सरल शब्दो में इसे इस प्रकार समझा जा सकता है यदि पुरे आसमान को ३६० डिग्री का मानकर उसे १२ भागो में बाटा जाये तो ३० डिग्री की एक राशि निकलती है इन्हीं १२ राशियों में से कोई एक राशि बालक की जन्म के समय पूर्व दिशा में स्थित होती है यही राशि जन्म के समय बालक के लग्न भाव के रूप में उभर कर सामने आती है।
एक लग्न समय लगभग दो घंटे का होता है इसलिये दो घंटे के बाद लग्न समय स्वतः बदल जाता है कुण्डली में अन्य सभी भावो की तुलना में लग्न को सबसे अधिक महत्व पूर्ण माना जाता है लग्न भाव बालक के स्वभाव, रूचि, विशेषताओ और चरित्र के गुणों को प्रकट करता है मात्र लग्न जानने के बाद किसी व्यक्ति के स्वभाव व् विशेषताओ के बारे में ५०: जानकारी दी जा सकती है।
ज्योतिष में लग्न कुण्डली का बड़ा महत्व है व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में जो राशि उदित होती है, उसे ही उसके लग्न की संज्ञा दी जाती है कुण्डली के प्रथम भाव को लग्न कहते है प्रत्येक लग्न के लिए कुछ ग्रह शुभ होते है, कुछ अशुभ यदि लग्न भाव में १ अंक लिखा है तो व्यक्ति का लग्न मेष होगा,इसी प्रकार अगर लग्न भाव में २ है तो व्यक्ति का लग्न वृषभ होगा अन्य लोगो को इसी प्रकार समझा जा सकता है।
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