सूर्यकान्ति त्रिपाठी के Crying for Karulaherके लिए प्रस्तावना लिखने के लिए मुझे प्रारंभ में कुछ चिकियाहट थी। मुद्री समझ नहीं रहा था कि महाभारत महाकाव्य की रचनात्मक लेखन में इतनी गाख्याओं एवं पुनव्यस्याओं के बाद इसे आधार बना कर क्या नया लिखा जा सकता है। किंतु इस काव्य व्यटक की पांबुलिपि पढ़ने के बाद मुझे अपने रिमिक विचार बदलने पड़े। मात्र पांच महिला वात्रों के साथ सूर्यकान्ति त्रिपाठी ने भारत युद्ध के परिणामों का एक नितंत नया विच प्रस्तुत किया है। इनল पांच महिलाओं के बीच भी दो अलग दृष्टिकोण हैं एक तत्कालीन गा के भी जन-सामान्य के प्रतिनिधि के रूप में किंकनी और तरिका का और दूच ताधारी कुलीन का प्रतिनिधित्म करने बाली राजपरिवार की तीन महिलाओं गांधारी, कृती और पांचाली या द्रौपदी का।
नाटक की कुतुहलपूर्ण सरचना मुझे पुरिपिडीज द्वारा लिखित ट्रीजन वीमेन जैसी चौक त्रासदों की याद दिलाती है। किंकरी और রिহণ पात्रों की तुलना ग्रीक नाटकी के कोरस (तहगान से की जा सकती है जो कि प्रारंभ से अंत तक उपस्थित रहता है, और जबरन धोपे हुए युद्ध जैसी स्थितियों से गुजरने वाली जाम जनता की वीड़ा का विवरण देते हुए उन पर टिप्पणी देता है और प्रश्न करता है। इस तरह के पात्र एक और भारतीय नाटक धर्मवीर भारती द्वारा लिखित संयुग में भी देखे जा सकते हैं।
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