भारतीय ज्योतिष में केरलीय ज्योतिष सामान्य रूप से उत्तर भारत में तथा विशेष रूप से दक्षिण भारत में प्रचलित है। इसका मूल उद्गम केरल प्रदेश से है। केरलीय ज्योतिष के नाम पर अब तक जो सामग्री प्रकाशित हुई है, वह तीन प्रकार की है। एक तो अक्षरांक ज्योतिष तथा दूसरी अंग स्पर्श विद्या तीसरी विषय कुंडली ज्योतिष है। इनमें प्रथम दो के प्रति ही ज्योतिषियों एवं जनसामान्य की जिज्ञासा अधिक है।
केरलीय ज्योतिष की प्राचीनता – केरलीय ज्योतिष कितना पुराना है इसका अनुमान असम्भव-सा है। हम केवल यही कह सकते हैं कि भारतीय ज्योतिष का अन्य विद्याओं की भाँति प्रस्फुटन तथा पल्लवन भी अनादि काल से हुआ है। इसकी विषय सामग्री को प्राचीन ज्योतिषियों ने अपने ग्रन्थों में स्थान दिया है।
दक्षिण भारत में ज्योतिषशास्त्र के विद्वान् दुर्गदेव ने ईस्वी सन् १०३२ ई. में अपने ग्रन्थ “रिट्ठ समुच्चय” में प्रश्नारिष्ट के आठ भेद- (१) अंगुलि प्रश्न, (२) अलक्त प्रश्न, (३) गोरोचना प्रश्न, (४) प्रश्नाक्षर प्रश्न, (५) आलिङ्गित प्रश्न, (६) दग्ध प्रश्न, (७) ज्वलित प्रश्न तथा (८) शान्त प्रश्न नाम से दिये हैं। इस ग्रन्थ में प्रश्नों का उत्तर देने की विधि भी दी गई है। दुर्गदेव प्रणीत यह “रिट्ठ समुच्चय” नामक ग्रन्थ प्राकृत भाषा में लिखा गया है। इसकी समाप्ति पर आचार्य लिखते हैं-
“रइयं बहु सत्थत्थं उवजीविता हु दुग्गएवेण ।
रिट्टं समुच्चय सत्थं वयणेण संजम देवस्स ॥”
दुर्गदेव के गुरु का नाम संयमदेव था। वे भी केरलशास्त्र के जानकार थे। इससे इतना तो निष्कर्ष निकलता ही है कि आज से एक सहस्र वर्ष पूर्व केरलशास्त्र का भारतवर्ष में खूब प्रचार था ।
केरलीय ज्योतिष का मूलाधार – केरलीय ज्योतिष का मूल आधार व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक चेष्टाओं से व्यक्त ज्योतिषीय संकेत होते हैं। व्यक्ति के अन्तःकरण में जो भाव होते हैं, वे ही उसकी वाणी तथा चेष्टाओं के द्वारा प्रकट होते हैं। व्यक्ति की विविध भाव भङ्गिमाएँ उसके अन्तःकरण की वृत्तियों का ही द्योतन करती है। मानव के मन में जैसा शुभाशुभ विचार आता है वैसा ही उसका फल प्रकट होता है। केरलीय ज्योतिष उनशुभाशुभत्व के विचारों की प्रतिच्छाया देखकर ही फलकथन करता है। अस्तु ।
पृच्छक से किसी पुष्प, फल, देव, नदी आदि का नाम कहलवाकर और उसके आद्य वर्ण से अथवा प्रश्न के आद्य वर्ण से या वर्णों के समुच्चय से उनके आंकिक मूल्य के योग की गणित क्रिया द्वारा त्रिकाल के प्रश्नों का बोध करते हैं। आय ज्ञान की पद्धति में केवल प्रथम वर्ण से काम चल जाता है। ध्रुवांक पद्धति में सम्पूर्ण प्रश्नाक्षरों से गणित किया जाता है।







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