त्रयीमयोऽयं भगवान् कालात्मा कालकृद् विभुः ।
सर्वात्मा सर्वगः सूक्ष्मः सर्वमस्मिन् प्रतिष्ठितम् ।।
ज्योतिषशास्त्र के आदि प्रवर्त्तक भगवान् भास्कर हैं। ये ही कालात्मा हैं। इन्हीं से जगत् की सृष्टि है। सृष्टि की उत्पत्ति और इसका लय दोनों ही कालाधीन हैं, जैसा कि सूर्यसिद्धान्त में भी कहा गया है-
लोकानामन्तकृत् कालः कालोऽन्यः कलनात्मकः ।
काव्यों में भी यत्र तत्र काल की महिमा का उल्लेख मिलता है। स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने भी कहा है ‘कालः कलयतामहम्’ काल को विभिन्न स्थलों पर भिन्न-भिन्न रूपों से परिभाषित किया गया है। परन्तु सत्य यही है कि ‘काल सर्वोपरि है, सर्व शक्तिमान है।’ इसीलिए भगवान् भास्कर कालात्मा हैं, कालकृत् हैं और स्वयं विभु हैं।
ज्योतिषशास्त्र के साक्षी के रूप में भी सूर्य और चन्द्रमा को प्रस्तुत किया गया है। इसका कारण है- हम जितने प्रकार के कालमानों का प्रयोग करते हैं, उनमें सूर्य और चन्द्रमा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। ज्योतिषशास्त्र में काल नव प्रकार के बताये गये हैं। जिनमें से हम चार काल मानों का प्रयोग प्रतिदिन व्यवहार में लाते हैं। वे चार कालमान हैं- सौर, चान्द्र, सावन और नाक्षत्र ।
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