वर्तमान में होने वाले अनेक रोग जैसे कि मधुमेह, हृदयरोग, उच्च रक्तचाप, मानसिक तनाव एवं अवसाद आदि की समस्या का मूल पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण माना जा रहा है। बौद्धिक एवं शारीरिक सुख-सुविधाओं के माध्यम से हम ढूँढने तो निकले थे सुख किन्तु रोग रूपी दुःख को प्राप्त कर रहे हैं। आज संसार के कई देशों की अपेक्षा भारत वर्ष में रोगों की संख्या ज्यादा है तथा सामान्य मनुष्य की औसत आयु भी कम है।
आज हम किसी व्यक्ति को प्रश्न करें की “क्या आप अपने स्वास्थ्य के शुभ चिंतक हैं”? तो व्यक्ति का उत्तर सकारात्मक मिलेगा। मगर उस स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए किए गए प्रयत्न नगण्य एवं नकारात्मक होंगे। स्वस्थ रहना कौन नहीं चाहता? सब चाहते हैं क्योंकि अस्वस्थ रहने से दैनिक कार्य आसानी से नहीं हो सकते तथा मानसिक संताप से जीवन भी कष्टमय हो जाता है।
आरोग्य ही सफलता की चाबी है तो इस चाबी से भला कौन वंचित होना चाहेगा। इसलिए ईश्वर से प्राप्त एक अनन्य भेंट रूपी इस जीवन को चलाने के लिये इस शरीर का लालन-पालन अत्यावश्यक है। अगर शरीर स्वस्थ रहता है तो हम अनेक ईश्वरीय भेंटों को जानने, समझने तथा उनके उपयोग के लिए सक्षम हो सकते हैं।
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