ज्योतिषीय गणित एवं खगोल शास्त्र – विमल प्रसाद जैन असल में ज्योतिष शास्त्र और खगोल शास्त्र का समन्वय करना आवश्यक है। खगोलशास्त्र की नई जानकारियॉ का फलित में प्रयोग होना चाहिये। ग्रहों के प्रभाव को उनसे प्रवर्तित प्रकाश, दुरी, गुरुत्वाकर्षण, विधुत-चुंबकीय क्षेत्र और विकिरण आदि के अंतर को ध्यान में रखकर फलित ज्योतिष करना अधिक वैज्ञानिक हो जायेगा। सूर्य के 22 वर्षीय चुम्बकीय चक्र का भी ध्यान रखना परम आवशयक है। इसके कारण रेडियो तरंगो में भी बहुत बाधा आ जाती है। इस पुस्तक में एन.सी.लहरी की लग्न-सारणी की तालिकाओं की भी व्याख्या की गई है। वक्री ग्रह क्यों होते है और उनका पृथ्वी पर क्या प्रभाव होना चाहिये, इस का वर्णन किया गया है। ग्रहो के उदयास्त का संक्षिप्त विवरण दिया है।
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