डा० गिरिजाशंकर शास्त्री का यह ग्रन्थ विवाहकृत्यविषयक वैदिक कर्मकाण्ड की दृष्टि से अतीव उपयोगी है। इस ग्रन्थ के उत्तरार्द्ध में ‘विवाह पटल’ नामक एक दुर्लभ एवं दुर्बोध पाण्डुलिपि का कष्टसाध्य सम्पादन कर हिन्दी अनुवाद किया है। ‘विवाहपटल’ का लेखक १५वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध का गौडवंशीय ब्राह्मण पीताम्बर है। लेखक ने ग्रन्थ के अन्तिम श्लोक में अपना परिचय दिया है।
हिन्दी अनुवाद सामान्य पाठक को सन्तुष्ट नहीं कर सकता क्योंकि मूलग्रन्थकार (पीताम्बर) स्वयं स्पष्ट कथन नहीं करता है। इसका कारण है कि भाषा बहुत शिथिल तथा कहीं कहीं अपाणिनीय प्रयोगों के कारण दुर्बोध ही नहीं त्रुटिपूर्ण भी प्रतीत होती है। ऐसा लगता है कि ग्रन्थकार अपनी बात को ठीक से सम्प्रेषित नहीं कर पा रहा है और ज्योतिषशास्त्रीय विषय में उलझा देता है, कारण कि उसका भाषाविषयक व्युत्पत्तिपक्ष कमजोर है। किन्तु डा० गिरिजाशंकर शास्त्री के वैदुष्य के कारण ग्रन्थ कुछ सँवर गया है।
इन्होंने इसे यथासम्भव सुबोध बनाने का प्रयास किया है किन्तु शाब्दिक अनुवाद कर देना इनकी विवशता है। तथापि ग्रन्थ का प्रतिपाद्य विषय अवश्य ही कुछ विवाह सम्बन्धी अनकहे पक्षों को उजागर करता है इसलिये इसका अपना एक विशेष महत्त्व भी है जिससे ज्योतिर्विज्ञानी विशेष रूपसे और ज्योतिषशास्त्र के जिज्ञासुजन सामान्य रूप से लाभान्वित हो सकते हैं।
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