Jyotish Ke Jharoke Se Jeevan Yatra
अनादि काल से मानव की यह इच्छा रही है की वह जीवन में आने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान लगा सके। अंतरिक्ष में चमकने वाले अनंत तारा समूहों ने उस को सदा ही आकर्षित किया है और इन में ही उस ने अपनी सभी जिज्ञाषाओं का हल खोजने का प्रयास किया है। इस अंतरिक्ष का विभिन्न दृष्टिकोण से अध्ययन खगोल-शास्त्र और उनका मानव-जीवन एवं संसार पर संभावित पूर्वानुमान के अध्ययन को ज्योतिष शास्त्र कहते हैं। भारतीय ज्योतिष की शक्ति एवं प्रेरणा के स्त्रोत वेद हैं जो सभी प्रकार के ज्ञान एवं बुद्धि के भण्डार हैं। इसी लिए इस को वैदिक ज्योतिष भी कहते हैं।
इस को समझने और इस में कुशलता प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति को पूर्व जन्मों और पूर्वकर्मों के अस्तित्व और प्रभाव के बारे में पूर्ण आस्था हो। हमारा वर्तमान जीवन और इस में हम जो कुछ भी हैं या जो कुछ भी होने वाला है भूतकाल में हमारे किये हुए कर्मों का फल ही है। सही समय पर, काल, इंसान को अपने पूर्व कर्मों के फल की ओर खींचता है। जैसे पूर्व कर्मों को अब मिटाया नहीं जा सकता, उसी प्रकार उन के फलों का सुख दुःख भोगना अवश्यंभावी है। यही विधि का विधान है। संत तुलसी दास ने “राम चरित मानस ” में कहा भी है कि “हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश विधि हाथ ” ।
ज्योतिष एक ऐसा विज्ञान है जिस में दैवज्ञ के ज्ञान के अतिरिक्त उस का अंतर्ज्ञान और दैवीय कृपा की भी उतना ही महत्वपूर्ण भूमिका है। यह एक सर्वागीण ज्ञान है और अन्य भौतिक ज्ञानों की तरह, इस में मात्र कुछ तत्वों के आधार पर कुछ कहना गलत हो सकता है। किसी भी बात के पूर्वानुमान के लिए पूर्ण कुंडली और उसके ग्रह, भाव, राशि, नक्षत्र, योग और पारस्परिक संबंधों का अध्ययन आवश्यक है। प्रत्येक ग्रह, भाव, राशि, नक्षत्र आदि अनेक कारकत्व के स्वामी होते हैं और अपनी शक्ति, स्थिति और अन्य तत्वों के पारस्परिक संबंधों के आधार पर अपना फल बताते है। किसी भी जातक की कुंडली उस के पूर्व जन्मों के आंशिक (प्रारब्ध) कर्मों का प्रतिनिधित्व है।
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