Jyotish aur Rog
विवेचन से स्पष्ट है कि ‘पेट से बाहर आ जाने का क्षण’ ही ‘जन्मसमय’ तथा ‘इष्ट’ आदि ज्योतिष के अंगों का आधार होना चाहिए। अब यदि उस ‘जन्म क्षण’ की प्रकृति (Nature) के गुण-दोष किसी प्रकार ज्ञात किए जा सकें, तो हमको जातक के गुण दोषों का भी पता चल जाएगा। वे गुण-दोष उस व्यक्ति में नेगेटिव फिल्म (Negative Film) की भाँति बीज रूप में रहेंगे और अनुकूल वातावरण पाकर, अनुकूल समय पर, क्रमशः प्रकट होंगे। जन्मादि समय में बीज रूप से डाले हुए प्रकृति के उन गुण-दोषों का विशद अध्ययन ज्योतिष शास्त्र (Astrology) का विषय है जो चमत्कारपूर्ण है।
2. हमारे मेधावी प्राचीन मुनियों ने प्रकृति के उन गुण-दोषों को देखने के लिए प्रकृति का गम्भीर अध्ययन प्रारम्भ किया। उस अध्ययन के फलस्वरूप उन्होंने प्रकृति के स्वरूप के चार मुख्य भाग कर दिए। उनका कहना है कि मनुष्य के गुण-दोष इन्हीं चार भागों के गुण-दोषों के प्रतिरूप होते हैं। वे चार विभाग ये हैं :
(i) ग्रह, (ii) राशि, (iii) नक्षत्र, (iv) भाव।
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