ज्योतिष का अर्थ शब्दकोष में दिया गया है – ऐसा शास्त्र जो ग्रहों-नक्षत्रों की दूरी व गति आदि का अध्ययन करे, जिसकी गणित और फलित दो शाखाएं हैं। यह शब्द मूलरूप से ज्योति से जुड़ा है। ज्योति प्रतीक है ज्ञान का। इस प्रकार इसका प्रतिपादन ‘ज्ञान’ के शास्त्र के रूप में भी किया जा सकता है। ज्योति स्वयं धारण करने वाले के माग को तो प्रकाशित करती ही है, दूसरों को भी राह दिखाती है। राह दिखाने का अर्थ रास्ते में आने वाली बाधाओं को दिखाना और उनसे बच निकलने तथा हटाने की युक्तियों को सुझाना भी है। ज्योतिष में ये सारी विशेषताएं हैं।
यह समझाने की आवश्यकता नहीं है कि मानव जीवन सरल रेखा के समान बिलकुल सीधा नहीं चलता। इसमें दाएं-बाएं कई घुमाव होते हैं। ऊपर-नीचे भी गति होती है जीवन की। इसकी व्याख्या प्रकृति के तीन गुणों के आधार पर विभिन्न ग्रहों से जातक के संबंधों को लेकर ज्योतिषशास्त्र में की गई है। जिन ग्रहों में सत्वगुण अधिक रहता है, उनकी किरणें अमृतमय होती हैं।
जिनमें रजोगुण होता उनकी किरणें मिश्रित होती हैं इसलिए वे ग्रह उभय गुणात्मक कहलाते हैं और जिनमें तमोगुण की प्रधानता होती है, उनकी किरणें विष गुणों से युक्त होती हैं। वैसे तो इन ग्रहों से जातक सदैव प्रभावित होता रहता है, लेकिन जन्म समय के ग्रहों की स्थिति का संबंध उस पर आजीवन रहता है। उसी के आधार पर समय-समय पर ग्रहों की स्थिति और उसके प्रभावों का अध्ययन किया जाता है।
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