Jataka Parijata
प्रस्तुत ग्रन्थ जातक परिजात श्री वैद्यनाथ दीक्षित द्वारा रचित ज्योतिष – साहित्य के नव रत्नों में से एक हैl १८ अध्यायों में विभक्त प्रस्तुत ग्रन्थ में विद्वान रचनाकार ने निर्द्वन्द रूप से पाराशरी मत का पूर्ण आदर – सम्मान करते हुए अपने नवीन मत एवम अनुभवों को सार्थक रूप में प्रस्तुत किया है ।प्रस्तुत ग्रन्थ का पठन “बृहज्ज़ातक” एवम “सारावली” के मनन करने के पश्चात करना उच्चता है l बृहज्ज़ातक की आवश्यकता को ध्यान में रखकर कल्याण वर्मा ने सारावली की रचना की परंतु सारावली में भी कुछ महत्वपूर्ण विषयों के अभाव के कारण ही जातक पारिजात की रचना की गई है lफलदीपिका , जातकभूषणं , जताकतत्व , अष्टकवर्ग महानिबंध आदि उच्च कोटि के ग्रंथों में भी स्थान- स्थान पर इस आद्वितीय ग्रन्थ का महत्व प्रस्तुत होता है
प्रस्तुत ग्रन्थ में खरग्रह विवेचन , निर्याण विवेचन , स्त्रीजातक , विद्या व शिक्षा विचार द्वितीय भाव भी, मांगलिक विचार का अनूठापन , राजयोग भंग का अद्भुत विचार आदि अनेक विषयों का खुलासा बहुत ही आत्मविश्वास के साथ ग्रंथकार ने किया है l जातक पारिजात स्वयं संक्षिप्त लेकिन सारग्राही होते हुए फलित श्रेणी का अनूठा ग्रन्थ है , जो पाठक के हृदय में उठने वाले प्रश्नों का समुचित समाधान करता है l यह ग्रन्थ प्रारंभिक अध्ययन कर्ताओं के लिए उपयोगी एवम सार्थक सिद्ध होगा l
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