श्री परमेश्वर की असीम अनुकम्पा से प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रन्थ ‘जातक पारिजात’ (भाग १) और उसका हिन्दी भाषा में यह सौरभ भाष्य पाठकों के सम्मुख उपस्थित है । ज्योतिष में संहिता, होरा और सिद्धान्त, यह तीन प्रधान विषय हैं। इनमें जातकपारिजात होरा के अन्तर्गत आता है। इस पुस्तक का निर्माण विख्यात कीति सर्वार्थचिन्तामणिकार श्री वेंकटाद्रि के पुत्र श्री वैद्यनाथ ने किया। यह समस्त प्राचीन फलित ग्रन्थों का सारभूत है। इस ग्रंथ का निर्माण १३४७ शक अर्थात् १४८२ विक्रम संवत् में हुआ। यह बहुत प्राचीन ग्रन्थ है और इसमें बहुत से प्राचीनतर ज्योतिष ग्रंथों का सार है। भिन्न-भिन्न स्थानों पर श्रीपतिपद्धति, सारावली, बृहज्जातक, सर्वार्थचिन्तामणि आदि ग्रन्थों की छाया मिलती है। बृहज्जातक के तो बहुत से श्लोक अक्षरशः जातकपारिजातकार ने ले लिये हैं। स्वयं श्री वैद्यनाथ ने लिखा है कि गर्ग, पराशर आदि आचार्यो के शास्त्रों का सार इस ग्रन्थ में है। विशेषकर सारावली, सर्वार्थचिन्तामणि एवं बृहज्जातक का सार तो इस ग्रंथ में भरा पड़ा है।
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