तिब्बत के सिद्ध योगियों (लामाओं) पर कुछ साल पहले अमेरिका और कनाड़ा के कुछ शोधकर्ता अपना अध्ययन कार्य कर रहे थे। अपने अनुसंधान के दौरान वह यह देखकर दंग रह गये कि जिस तापमान पर आम आदमी पर्याप्त ऊनी कपड़े पहनने के बावजूद ठण्ड से ठिठुरता रहता है, वहीं तिब्बत के योगी अपने शरीर की गर्मी मात्र से उन ठण्ड भरी रातों में भी पानी से तर की गयी चादरों को कैसे सुखा देते हैं ? और कैसे वह अपने हृदय की धड़कन को स्वेच्छा से कम अथवा अधिक कर लेते हैं, श्वास की गति को नियन्त्रित कर सकते हैं और कैसे अपने शारीरिक तापमान पर नियन्त्रण स्थापित कर लेते हैं
यद्यपि उनका अध्ययन कार्य शारीरिक क्षमताओं तक ही सीमित था पर उन्हें नहीं मालूम कि योगियों के पास अद्भुत मानसिक क्षमता भी रहती है। वह अपनी मानसिक शक्ति के साथ उन्हें और भी आश्चर्य में डाल सकते हैं। प्रत्येक शोधकर्ता के पास सोचने की एक सीमित क्षमता रहती है। वह केवल उतना ही सोच पाता है जितना कि उसका मस्तिष्क जानता है, परन्तु हमें यह ठीक से समझ लेना चाहिए कि मनुष्य के पास अपार शक्ति है।
हमारी क्षमताएं सीमित हैं, इसलिए हमें सिर्फ वही दिखाई पड़ता है, वही सुनाई देता है और उसी गंध का हमें पता चल पाता है, जिन्हें हमारी आँखें देख सकती हैं, कान सुन सकते हैं और नाक सूंघ सकती है। इसके विपरीत संसार की सीमा हमारी ज्ञानेन्द्रियों की सीमा तक सीमित नहीं है। संसार उनसे बहुत आगे तक फैला है। जब हम आकाश की ओर देखते हैं, तब हम आकाश का केवल वही भाग देख पाते हैं, जो हमारी आँखों की सीमा में आता है, जबकि आकाश का विस्तार हमारी ज्ञानेन्द्रियों की सीमा से करोड़ों गुना बड़ा है।
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