हाथ की रेखाओं का अध्ययन एक अनिश्यि है और उसे जा देव और थी कठिन है। बहुत से लोग यह अध्यन कहे साह से आध करते हैं, किन्तु बिरले हो इस क्षेत्र में लगातार बने रहते हैं। हाथों के अध्य द्वारा रोगों का जाल प्रात चरने के लिये विशेष प्रकार की कुशलता की आवश्यकता है। इसके लिए हस्तलेखबिर को हाथों के मानिक और जैविक पह शरीर रचना व किया और ग्रस्त के दौरान शरीर में जो विकार डापन्न होते हैं उनकी पूरी शनकारी होनी चाहिए। निदानीता की उप जानकारियों का हाथ के चिन्हों के साथ समय करके रोग का निधन करत होता है।
मुविख्यात हस्तरेखाविद् दन्त्यु जी को है। हस्तरेखाविद् डॉ. चारलोटरी कूल्फ, और डॉ. यूजीन शीमेन ने हस्तरेखा को अपने अनुभवों से समृद्ध बनाका मानता की महत्वपूर्ण गंग-निदानी हरुलेखाविद् को चिकित्सा के क्षेत्र में कार्यरत डाक्टरों में गार संवाद बनाये रखना होता है। उसमें रोगों की उत्पति पुद्धि की गृहता एवं जटिलत को सुक्ष्मता से समझने के प्रति रुझान होना चाहिए।
इस रचना के लेखक ने अपने पूज्य गुरु जी वगीय हमें प्रताप सिंह जी चौहान के भार्गदर्शन में सन् 1972 में हस्तरेखा विज्ञान का अध्ययनम्भकिया था। गुरु जी ने लेखक के हाथ देखकर उसे हस्तरेखा विज्ञान का अध्यन करने की प्रेरणा दी। उन्होंने अपने नोट्स दिये और अपनेन्दिन हस्त-पान कार्य के द्वारा लेखक को अनुभव प्रदान किया। सौभाग्य से लेखक के कुछ सित्र और सभी भी चिकिला क्षेत्र में कार्यरत हैं।
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