Grah Prayog: Arthat Grah Shanti
सनातन धर्मावलम्विजनों के लिये वस्तुतः निरतिशय ब्रह्मानन्द जो अमृत मोक्षस्वरूप है उसी को प्राप्त करना ही मुख्यलक्ष्य है। उपर्युक्त ब्रह्मानन्द को प्राप्त करने के लिये वेदों में कर्मकाण्ड ज्ञानकाण्ड और उपासना काण्ड प्रमुख रूप से बतलाये गये है “यज्ञो वै श्रेष्ठ तमं कर्म” और भारतीय संस्कृति एवं भारतीय कर्मकाण्ड का क्षेत्र भी बृहद विस्तृत है ऐसे विस्तृत कर्मकाण्ड के क्षेत्र में नित्य और काम्य भेद से पृथक् विधि भी है, नित्य कर्मकाण्ड सन्ध्यावन्धन, पंचायतन पूजा, बलिवैश्वदेव इत्यादि है तो, ग्रहशान्ति, वास्तुशान्ति, यज्ञ, एवं समस्त षोडश संस्कार आदि इन समस्त काम्यपूजन में गणेशाम्बिका बरुण पूजन, पुण्याहवाचन, मातृकापूजन, आयुष्य मंत्र, नान्दी आद्धान्तकर्म अवश्य अनुष्ठित होते हैं, इसके अनन्तर कामनानुसार कर्मानुसार ब्राह्मण बरण दिग्रक्षण, पंचगव्यकरण मण्डपपूजन प्रवेश, वास्तुपूजन, प्रधानपीठ पूजन, योगिनीपूजन, क्षेत्रपालपूजन, पचभूसंस्कार पूर्वक अग्निस्थापन, ग्रहस्थापन कुशकण्डिका, हवन, बलिदान पूर्णाहुति, वसोर्द्धारा, भस्मधारण संवत् प्राशन, पूर्णपात्र दान, प्रणीता विमोक, श्रेयोदान, ब्राह्मणदक्षिणा, ब्राह्मणभोजन, उत्तरपूजन, पीठादिदान अभिषेक, डायापात्रदान, देवविसर्जन क्षमाप्रार्थना पूर्वक अर्पण वह जो कम है लगभग समस्त स्मार्त काम्य कर्मों में किये जाते है तो प्रस्तुत पुस्तक में केवल, वास्तु, योगिनी, क्षेत्रपाल पूजन को छोडकर अन्य समस्त का समावेश किया गया है, वस्तुतः यह पुस्तक “ग्रहशान्ति पद्धति” नाम से प्रचलित पूर्वाचायों द्वारा संपादित है, यह पुस्तक जो आपके सम्मुख है इसका मूल श्रोत अथवा आधार पं० श्री वायुनन्दनजी मिश्र है और प्रकाशक भी श्री मास्टर खेलाडी लाल एण्ड संस के अधिष्ठाता श्री गोपाल जी है। इस पुस्तक में मैंने तो केवल पूजन विधि में कहीं कहीं जो पढ़ते समय (प्रिंटिंग मिस्टेक) कुछ अशुद्धियाँ और कहीं कहीं कुछ, अल्पता अनुभव होने के कारण एवं जिन व्यक्तियों विद्वानवृन्द को पढ़ते समय विधि का ज्ञान न होने के कारण होने वाले भाषिक कष्ट को दूर कर सकूं इस उद्देश्य से यथा सम्भव यथाज्ञान हिन्दी भाषा में टीका सहित और कहीं कहीं संशय निवारणार्थ कुछ टिप्पणियों के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, सम्भव है बहुत स्थान पर त्रुटियाँ भी रही हों, विज्ञजन अवश्य रूप से ऐसे त्रुटियों का विचार त्याग इस प्रयास को स्वीकारेंगें, और अपने आशिर्वचनों से हमें इसी तरह आगे भी अन्य पुस्तकों का संपादन संवर्द्धन करने के लिए उत्साहवर्धन करेंगें, जिससे हमारे ग्रन्थों का संवर्द्धन पूर्वक संरक्षण हो सके।
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