टोटकों का भारतीय जनजीवन में आज भी व्यापक प्रभाव है। देहातों में तो इसका अधिकतम प्रचलन देखा जा सकता है। इनका अपना गंभीर रहस्य है। अनेकों बार प्रायः चौराहों पर फल-फूल, पंचमेवा, मिठाई, मोतीचूर के लड्डू नींबू, जायफल, कटे हुए उबले अंडे, गोबर के कंडे, राख, मिट्टी, कंकड़, राई, लाल साबुत मिर्च अथवा साबुत उड़द आदि पड़े दिखाई दे जाते हैं। ये सब टोटकों के ही अंग होते हैं। इनका प्रभाव बड़ा घातक होता है। इन चीजों को भूलवश भी लांघने वाला या उसमें ठोकर मारने वाला व्यक्ति शीघ्र ही रोगी हो जाता है और जिसके ऊपर से उतारकर वह सामग्री रखी जाती है, वह तत्काल ठीक हो जाता है।
कई बार व्यक्ति किसी कार्य के निमित्त ऐसे उपाय करता है, जिसमें सफल होना प्रायः संदिग्ध रहता है, अतः पहले से यह जान लेना अनिवार्य है। कि जो उपाय वह कर रहा है, उसके योग्य वह है भी या नहीं ? नासमझी में किया गया उपाय सदा नुकसानदेय साबित होता है। कोई भी उपाय या प्रयोग करने से पहले अपने गुरु या किसी अनुभवी व्यक्ति से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए। केवल इस पुस्तक को पढ़कर कोई भी प्रयोग करना घातक हो सकता है। यहां यह बात स्पष्ट कर देना हम अपना नैतिक कर्तव्य समझते हैं। कि किसी भी प्रयोग में आपकी सफलता आपके विश्वास और प्रयासों पर ही निर्भर करेगी।
यदि आप किसी प्रयोग में असफल हो जाते हैं या किसी प्रकार की हानि आपको उठानी पड़ती है, तो इसके लिए लेखक, प्रकाशक, संपादक अथवा मुद्रक लेशमात्र भी जिम्मेदार नहीं होंगे। यह पुस्तक पाठकों के केवल ज्ञानवर्धक के लिए है, किसी पर कोई प्रयोग करने अथवा इसे व्यावसायिक रूप में अपनाने के लिए तो कतई नहीं है।
Reviews
There are no reviews yet.