द्वितीय भाव लग्न से सटा हुआ होता है और यह चतुर्थ भाव की तरह स्थित होता है और हम जानते है कि चतुर्थ भाव कि तरफ बढ़ने पर हमे वह विंदु प्राप्त होता है जो पृथ्वी का निम्नतम विंदु होता है अतः द्वितीय भाव लग्न कि आधार प्रदान करता है, जैसे बारहवा भाव लग्न का क्षरण या व्यय करता है।
इस कारण द्वितीय भाव उन उन सभी बातो का घोतक बन जाता है, जो हमारे सुखद जीवन के किए अत्यंत आवश्यक होती है, या ये सभी वस्तुए जो हमारे इन जीवन में हमे जीने के लिए सहारा देती है।
जब हमारा जन्म होता है तो जो व्यक्ति को जो सबसे पहले मिलता है, वह है उसका परिवार वह परिवार जो उसका अपना होता है और उसे जीवन में वह बातावरण देता है, जो उसके विकास के लिए आवश्यक होता है जैसे उसकी पहली या प्राम्भिक शिक्षा संस्कार जो उसे जीवन में आगे बढ़ने के लिए कारगर होते है यदि हमारा भाव पीड़ित हो, तो व्यक्ति को अच्छे संस्कार नहीं मिलते और उसकी प्राम्भिक शिक्षा निम्न कोटि की होती है।
क्योकि जन्म लेने के बाद सबसे पहले व्यक्ति बोलना सीखता है, अतः यह भाव वाणी का भी हो जाता है वाणी की गुणवत्ता का निरिक्षण भी इसी भाव द्वारा करना चाहिए यदि यह भाव अच्छा हो तो व्यक्ति की वाणी सम्मोहक और आकर्षित करने वाली होती है वही यदि यह भाव पीड़ित होता है तो व्यक्ति को बोलने का ढंग नहीं होता, वह अपशब्द बोलेगा, झूठ ज्यादा बोलेगा या उसकी वाणी में विकार होता है।
Reviews
There are no reviews yet.