Dasha Phala Darpan
विषय प्रवेश ज्योतिष की यदि कोई कसौटी है तो वह फलित ज्योतिष है और फलित का आधार है विंशोत्तरी आदि दशाएं । दशा एवं मुक्ति विशेष में ग्रह जो फलाफल देते हैं वह नैसर्गिक कारण गुणों आदि के अनुरूप ही दिया करते हैं। दशा के द्वारा प्रत्येक ग्रह की फल प्राप्ति का समय जाना जाता है। प्रत्येक ग्रह अपनी गजदशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्म दशा व प्राण दशा तक के काल अर्थात् समय में अपना फलाफल दिया करते हैं। भारतीय ज्योतिष में विंशोत्तरी दशा, अष्टोत्तरी दशा. योगिनी दशा, षोडशोत्तरी दशा, द्वादशोत्तरी दशा, पंचमोत्तरी दशा, शताब्दिकादशा, चतुरशीतिसमादशा, द्विसम्प्रतिसमा दशा षष्ठिहायनी दशा, षट्त्रिंशत्समा दशा. कालदशा, चक्रदशा, चर दशा स्थित दशा, योगार्थदशा, केन्द्रादिदशा कारक दशा. मुन्धादशा, मण्डूक दशा शूल दशा, त्रिकोण दशा, दृग्दशा, पंचस्वर दशा, सन्ध्या दशा, पाचक दशा, तारादशादि अनेक ५२ प्रकार की दशांए हैं। परन्तु इन सबका मूलाधार विंशोत्तरी दशा है। भारतीय ज्योतिष में प्राथमिकता विंशोत्तरी दशा को ही दी गई है। दशा और उसके फलादेश को जानने से पूर्व हमें कुछ विशिष्ट जानकारी प्राप्त करना आवश्यक हो जाता है। ग्रहों के कारकत्व का विवरण देखना चाहिए। प्रत्येक ग्रह के साथ उसका कारकत्व या गुणावगुण भी देखना आवश्यक है। ग्रह और उनके कारकत्व सूर्य माणिक्य रत्न, दशम भाव जन्म कुंडली में राज्य पक्ष, आत्मा, निज-अन्तस्तम स्थान, स्वयं, लाल वस्त्र, वन, पर्वत, मर्म स्थान, पिता, शक्ति, हृदय- अस्थि, आरोग्य, शक्तिसम्पन्नता, आजीविका का साधन ज्ञानोदय पालक, महापुरुष, दायां नेत्र, अग्नि, प्रकाश, उच्च स्तरीय जातक ज्ञान, सूक्ष्मातिसूक्ष्म तत्त्व, खुला स्थान पूर्व दिशा, चौड़ाई, बड़प्पन, सोना पुर्लिंग, लग्न के समान होना, विछोह या पृथकता, कलह, त्याग, वर्चस्व, पौरुष, स्वर (अ, ई उ ऐ, औ, आदि) देवालय, कलेजा मेरुदण्ड, स्नायु मण्डल, सिर दर्द, अपच, क्षय, महाज्वर, अतिसार, मन्दाग्नि, मानसिक रोग, उदासीनता, अपमान, लकड़ी, ऊन, यज्ञादि खुली जगह, नारंगी रंग, स्वर्ण, मध्यमाकार आदि सूर्य के कारक है। चन्द्र . मोती, माता, मन, मस्तिष्क, गन्धादि, पृथ्वी, ब्राह्मण वर्ग, कपास, गेहूं, ईख, रजत, दूध, दही, मक्खन, सम्पत्ति, यात्रा, गतिशीलता, भावना, संवेग, भावुकता, शीघ्र
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