Laghu Parashari
उडुदायप्रदीप नामक मौलिक ग्रन्थ ‘लघु पाराशरी’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस ग्रन्थ में विंशोत्तरी दशा पद्धति पर आधारित महत्त्वपूर्ण श्लोक दिये गए हैं। लघु पाराशरी में कुल 42 श्लोक हैं जिनका आधार महर्षि पराशर विरचित बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् है। इस ग्रन्थ में स्थानादिवश विशिष्ट फलों से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण सूत्रों का एकत्रीकरण है।
इस संपूर्ण पुस्तक को 5 अध्यायों में विभाजित किया गया है। संज्ञाध्याय में मंगलाचरण, अन्तर्वस्तु, उद्देश्य, आधार आदि का विवरण है। द्वितीय अध्याय में मुख्यतः भावेशों के शुभाशुभ होने के सूत्रों की व्याख्या है। तृतीय अध्याय में केन्द्रेश और त्रिकोणेश के परस्पर सम्बन्धों के आधार पर निर्मित होने वाले योगों को परिभाषित किया गया है। चतुर्थ अध्याय में आयु भावों और मारक भावों के निर्धारण के अतिरिक्त भाव स्वामियों के मारकत्व के क्रम का विवेचन है । पञ्चम अध्याय में दशाफल के महत्त्वपूर्ण सूत्रों का सार है। परिशिष्ट में लघु पाराशरी का सारांश प्रस्तुत किया गया है जिससे समय- समय पर त्वरित पुनरावलोकन किया जा सके।
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