आमुख आधुनिक समाज में वर-वधू की कुंडली का मिलान दिनोंदिन जटिल होता जा रहा है। बात प्रासंगिकता की भी है जब कुण्डलियाँ मिलाने के फेर में ज्योतिषी इतना बवाल कर देते हैं कि सही मेल की शादी करना भी असंभव लगने लगता है तो कहीं समान व्यवसाय में रत दो इंसान सहज-स्वाभाविक ढंग से एक-दूसरे का वरण करते-करते भी अनिश्चित की आशंका में गुण मिलान के फेर में पड़ जाते हैं। यहाँ पहली बात यह याद रखनी चाहिए कि वैदिक काल में कुंडली मिलान का चलन नहीं था। तब विवाह उत्तरायण में शुभ मुहूर्त देखकर कर दिए जाते थे। विवाह सम्बन्धी तमाम वैदिक मन्त्र वर-वधु के प्रति शुभेच्छा तथा आशीर्वचन के साथ मंगलकामनाओं से परिपूर्ण हैं जिनमें ग्रह-नक्षत्र या कुंडली इत्यादि का कोई उल्लेख नहीं है।
इसके बाद स्मृति तथा पुराणों के युग में अपरा विद्या के रूप में ज्योतिष के विकास के साथ कुंडली मिलान का प्रचलन बढ़ता गया और विवाह पूर्व इस परिपाटी का पालन कतिपय वर्गों में किया जाने लगा। उत्तरी भारत में कुंडली मिलान का निर्णय वर-कन्या के गुण मिलाकर किया जाता है जो कि गलत है। मैं ऐसे अनेक उदाहरण बता सकता हूँ जब दस से कम गुण मिलने पर भी पति-पत्नी ने ५५-६० वर्ष तक सुखी दाम्पत्य जीवन बिताया। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रमुख सचिव तथा तमिलनाडु और महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे स्वर्गीय श्री पी सी अलेक्जेंडर तथा उनकी पत्नी के कुल १२ गुण मिलते थे जबकि उन्होंने ६० साल से ज्यादा खुशहाल वैवाहिक जीवन जिया। इसी प्रकार भारतीय विद्या भवन के ज्योतिष संकाय में वरिष्ठ शिक्षक श्री एन एन शर्माजी ने मुझे बताया कि उनके अपनी श्रीमतीजी से कुल १२ गुण मिलते हैं और वे सुखी-संतुष्ट वैवाहिक जीवन के ५५ वर्ष पूर्ण कर चुके हैं। दक्षिण भारत में कुंडली मिलान कुछ विस्तृत तथा व्यापक ढंग से होता है और अधिकांश मामलों में ज्योतिषी इतनी आपत्तियां उठाते हैं
Reviews
There are no reviews yet.