भारत की सनातन परम्परा अक्षुण्ण भाव से जीवित रहने का मुख्य कारण है कि भारत विष्णुपुराण के कथानुसार कर्म भूमि है, भोग भूमि नहीं- अर्थात् जन कल्याण के लिए कर्म करना।
यह कर्म भारत के उन सन्यासियों ने, चाहे वे किसी भी मत के क्यों ना हों, सदैव किया है और सदैव करते रहेंगे।
प्रश्न यह उठता है आज भी भारत के विभिन्न भागों में महान साधु संग दृष्टिगोचर होते हैं क्या? उत्तर है कि हाँ।
यह पुस्तक कुछ ऐसे ही संतों की कहानी है जो एक भ्रमणशील व्यक्ति ने, उनका सत्संग करके, उसका लाभ उठाकर, आपके सामने प्रस्तुत किया है।
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