शास्त्रों का कथन है कि मंत्र देवताओं का अक्षर और अगोचर रूप हैं। जिस प्रकार देवताओं के विग्रह और मूर्तियां उनके साकार रूप और पावन प्रतीक हैं, ठीक उसी प्रकार मंत्र उनके निराकार रूप हैं। परंतु एक और भी बड़ा अंतर है। जहां अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाओं और उनकी प्रतीक पिण्डियों में उस देव विशेष की शक्तियां निवास करती हैं वहीं मंत्रों में तो स्वयं देवता निवास करते हैं।
हमारे लगभग सभी शास्त्रों का मत है कि मंत्र देवी-देवताओं के अगोचर अक्षर रूप होते हुए भी पूर्णतया जीवन्त होते हैं। तंत्र शास्त्र की पुस्तकें ही नहीं, बल्कि सभी धर्मग्रंथ एक स्वर से घोषणा कर रहे हैं कि मंत्रों का पूर्ण अनुष्ठानपूर्वक सच्चे हृदय से जप करने वाले साधक से देवता प्रसन्न और संतुष्ट तो रहते ही हैं, उसके समक्ष साकार रूप में सशरीर उपस्थित होकर उसे न केवल दर्शन देते हैं, बल्कि उसकी सभी मनोकामनाओं और कार्यों को तत्काल सिद्ध भी कर देते हैं।
प्राचीनकाल में देवी-देवता ऋषि-मुनियों के आह्वान पर सशरीर उपस्थित हो जाते थे, यह उनके द्वारा सतत रूप से जपे जाने वाले मंत्रों का ही कमाल था। द्रौपदी की एक ही पुकार पर चाहे जब और चाहे जहां भगवान कृष्ण का तुरंत उपस्थित हो जाना, कुंती के मंत्र-आह्वान पर बालपन में सूर्यदेव और शादी के पश्चात क्रमशः स्वर्ग-नर्क के संचालक और आत्माओं के न्यायाधीश धर्मराज मृत्यु-नियंत्रण देव यमराज देवराज इंद्र तथा अश्विनी कुमारों का सशरीर उपस्थित होकर उसे पुत्र प्रदान करना मंत्रों के स्तवन द्वारा ही संभव हुआ था, बालक ध्रुव और प्रह्लाद ने मंत्रों के जप द्वारा ही परमपिता के साक्षात् दर्शन किए थे तो भगवान शिव तक स्वयं जप करते हैं।
Reviews
There are no reviews yet.