उख जगन्नियन्ता परमात्मा को अनेक धन्यवाद हैं कि, जिसने अपनी अनुपम दया से इस जगत्में विद्यारत्न को प्रगट करके प्राणियों को अतुल सुख प्राप्त होने का सरल उपाय बताया है, जो मनुष्य इस संसार में विद्या से दीन है, उसको सुख पूर्णतया प्राप्त नहीं हो सकता. विद्या की गणना में वेद, उपवेद, वेदांग, शास्त्र पुराण इत्यादि प्रसिद्ध हैं. वेदके ” शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष, छन्द ” ये छः अंग हैं. इनमें ज्योतिष शास्त्र प्रत्यक्ष है । क्योंकि, ज्योतिष में गणित और फलित इन दोनों का फल प्रत्यक्ष ही भाता है: गणितमें ग्रह ग्रहण इत्यादि और फलितमें जातक, ताजिक, स्वर, प्रश्न, शकुन आदि । जातकग्रन्थों में अत्यन्त सरळ ग्रन्थ ” मानखागरी” है. संस्कृत भी उसका यद्यपि बहुत कठिन नहीं है तथापि सामान्य श्रेणी के पंडित कठिनता से समझ सकते हैं। उसकी भी कठि- नाईको दूर करने के हेतु हमने बहुत सरल भाषा टीका तथा उदाहरण देश भाषा में करके उपरोक्त जातक ग्रन्थको सर्वोपकारक बनाया है। अन्य जातक ग्रन्थों की अपेक्षा ” मान- सागरी ” में बहुत ही उत्तम सेतिसे जन्म पत्र सम्बन्धी फल और गणित को दर्शाया है।
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