पूजा, अर्चना, आराधना, उपासना आदि लगभग समानार्थी शब्द हैं जो आस्तिक समुदाय को अलंकृत करके आराधकों के लिए प्रबल सद्मार्ग का पावन पथ प्रारूपित करते हैं जिसके लिए ज्ञान की नहीं, बल्कि आकण्ठ भक्ति, अपरिमित आस्था और विश्वास की आवश्यकता होती है।
साधना, मंत्रजप, स्तोत्रपाठ, तंत्रविद्या का अनुकरण, यंत्र संरचना, स्थापना तथा साधना को, काम्य साधना अथवा नैमित्तिक आराधना से अभिव्यक्त करना ही उचित है। अभीष्ट की संसिद्धि, किसी विशिष्ट प्रयोजन की सम्पूर्ति, मनोकामना और अभिलाषा को निर्विघ्न प्राप्त करने हेतु मंत्र शक्ति को जागृत करके उसका उपयुक्त उपयोग करना अनिवार्य है। विशिष्ट मंत्र की आवृत्ति अर्थात् जप, स्तोत्रपाठ आदि के विधान को भलीभाँति समझ लेना उपयुक्त है ताकि आराधना की सफलता के संशयरहित होने का सशक्त तथा सुदृढ़ आत्मविश्वास उत्पन्न हो।
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