प्रस्तुत ग्रन्थ “भाव-चिन्तामणि” नाम से भी विख्यात है। इस ग्रन्थ के रचयिता त्रिस्कन्धवेत्ता ज्योतिर्विद् नारायण भट्ट महाराष्ट्र के निवासी थे। इन्होंने फलित ज्योतिष के अनेक ग्रन्थों का स्वाध्याय करके ज्योतिषशास्त्र के जातक-प्रकरण में भावस्थित ग्रहों का फल बताने के लिए इस ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा में भुजङ्गप्रयात छन्द में लिखा गया है और इस पर मालवीय दैवज्ञ धर्मेश्वर ने संस्कृत भाषा में “अन्व्यार्थ-प्रबोध-प्रदीप” नामक सरल टीका लिखी है। मूल एवं टीका के सम्पादक पण्डित ब्रजबिहारीलाल शर्मा हैं जिन्होंने कुशल सम्पादन के अतिरिक्त इसमें विस्तृत टिप्पणियाँ भी जोड़ दी हैं। ये टिप्पणियाँ हिन्दी भाषा में हैं, और ये मूल एवं टीका को स्पष्ट, सरल और सुगम बना देती हैं। इनमें वराहमिहिर, गर्ग, पराशर, वसिष्ठ, कश्यप, नारद तथा अन्य प्राचीन आचार्यों के मतों पर तुलनात्मक विवेचन किया गया है और उपयोगी स्थलों पर यवनमत और पाश्चात्य मत भी दे दिए गए हैं; ग्रहों का गुण, स्वभाव, स्वरूप, कारकत्व आदि का कहीं समास से और कहीं व्यास से वर्णन किया गया है और उनके राशिफल, दृष्टिफल और युतिफल विस्तृत रूप में दिए गए हैं।
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