Yantra Shakti
भारतीय वेदादि शास्त्रों से यह सिद्ध होता है कि प्राणी के उत्पत्ति काल के साथ ही जिस वाणी का आविर्भाव होता है वह परा, पश्यन्ती एवं मध्यमा के क्रम से होती हुई सर्वजनश्राव्य ध्वनि के रूप में ‘बैखरी’ कहलाती है। इस बैखरी का सर्वप्रथम वर्ण ‘ॐ’ है। यह ओङ्कार समस्त वाणी-वैभव का मूल स्रोत है तथा इसी के आकार-विकार से वर्णलिपियों का विकास-विस्तार हुआ है।
श्वास-प्रश्वास के समय ‘अजपा-गायत्री’ के रूप में प्रसिद्ध बीजमंत्र ‘सोऽहम्’ के ‘स’ और ‘ह’ का लोप होने पर ‘ओम्’ का रह जाना तथा उच्चारण यन्त्र रूप कण्ठ-तालु-नासिका के माध्यम से ध्वनि का प्रकट होना ही ‘ॐ’ के रेखामय रूप को व्यक्त करता है। इसी ओङ्कार के विभिन्न खण्डों से आचार्यों ने लिपि देवनागरी का स्वरूप स्थिर किया तथा ‘1’ से 9′ तक के अंकों की आकृति निश्चित की।
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